Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्रावकाचार : एक परिशीलन
५४५
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(३) छविच्छेब-किसी भी प्राणी के अङ्गोपाङ्ग का छेदन करना अथवा किसी मनुष्य की आजीविका नष्ट करवाना । अधिक कार्य लेकर पारिश्रमिक कम देना इस व्रत के दोष हैं।
(४) अइभारे-बैल, ऊँट, घोड़े आदि पशुओं पर उनकी शक्ति से अधिक भार लाद देना तथा अनुचर मनुष्यों से अधिक कार्य करवाना।
(५) भक्तपानविच्छेद–अपने आश्रित पशु या मनुष्यों को प्रमाण से कम भोजन पानी देना या अनुचर को कम वेतन देना इत्यादि । रुग्णता के समय वेतन या भोजनादि न देना ।
इसी प्रकार द्वितीय या स्थूल मृषावाद विरमणव्रत के पांच अतिचार श्रमणोपासक के जानने योग्य हैं किन्तु आदरने योग्य नहीं हैं, वे हैं-- सहसाभ्याख्यान, रहस्याभ्याख्यान, स्वदारमंत्रभेद, मिथ्योपदेश एवं कूटलेख प्रक्रिया।२२ इनका तात्पर्य क्रमशः इस प्रकार है-(१) किसी पर चोरी, व्यभिचार आदि का बिना निर्णय किये कलंक लगाना (२) किसी की रहस्यमय गुप्त बात जान-बूझकर प्रकट करना अर्थात किसी के अपयश के उद्देश्य से अपने विश्वासपात्र व्यक्ति के साथ विश्वासघात करना (३) पति-पत्नी का पारस्परिक रहस्य उद्घाटन करना (४) हिंसा, असत्य, इत्यादि पाप कार्य में प्रवृत्ति का उपदेश करना (५) किसी को धोखा देने, झूठी लिखापढ़ी, झूठे हस्ताक्षर आदि करना।
स्थूल अदत्तादानविरमणव्रत के पाँच अतिचार त्यागने योग्य हैं वे इस प्रकार हैं-(१) स्तेनाहृत-स्वयं चोरी न करके अन्य चोर से चुराई वस्तु अपने पास रखना । (२) तस्करप्रयोग-अन्य व्यक्तियों को चोरी करने को प्रेरणा देना । (३) विश्वराज्यातिक्रम-राज्य के न्याययुक्त नियमों का उल्लंघन करना, व्यापार आदि में राज्य का कर न चुकाना, राज्यकर्मचारी का रिश्वत खाना, अर्थलोम के लिए अपने देश के अहित में देशविरोधी कार्य करना आदि-आदि कार्य। (४) कटतुला-कटमान-नाप-तोल में कम देना व अधिक लेना। (५) तत्प्रतिरूपकव्यवहार-वस्तु में मिलावट करना जैसे दूध में पानी, असली घृत में डालडा, चावल में सफेद कंकर, हल्दी में पीली मिट्टी, शुद्ध तैल में अन्य तैल आदि ।
स्वदारसंतोषव्रत के पाँच अतिचार है-(१) इत्वरिकपरिग्रहीतागमन-अल्पकाल के लिए धन देकर रक्खी हुई स्त्री से सहवास करना (२) अपरिहोतागमन–वेश्या आदि के साथ सहवास करना (३) अनंगक्रीड़ा-अन्य कृत्रिम साधनों से कामसेवन करना (४) परविवाहकरण-अपनी संतति के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों को विवाह में प्रोत्साहन देना, रस लेना । (५) कामभोगतीवाभिलाष-विषयभोगों में तीव्र आसक्ति रखना।
स्थूल इच्छापरिमाण अपरिग्रह व्रत के पांच अतिचार--- (१) क्षेत्रवस्तु के यथापरिमाण का उल्लंघन करना। (२) हिरण्य सुवर्ण के यथापरिमाण का उल्लंघन करना । (३) द्विपद-चतुष्पद के यथापरिमाण का उल्लंघन करना । (४) धन-धान्य के यथापरिमाण का उल्लंघन करना । (५) कुप्य का यथापरिमाण का उल्लंघन करना। दिशावत के पांच अतिचार निम्नलिखित हैं(१) ऊर्ध्वदिशा के परिमाण का अतिक्रम करना । (२) अधोदिशा के परिमाण का अतिक्रम करना। (३) तिर्यदिशा के परिमाण का अतिक्रम करना। (४) एक दिशा में क्षेत्र घटाकर दूसरी दिशा में बढ़ाना । (५) स्मृति में मर्यादा मूलने पर आगे बढ़ना । उपभोग-परिभोगपरिमाणवत के भोजन सम्बन्धी पाँच अतिचार(१) सचित्त का आहार करना। (२) सचित्त-प्रतिबद्धाहार-त्यागी हुई सचित्त वस्तु से मिश्रित का आहार करना।
(३) अपक्वाहार अर्थात् अधकच्चे फल या अग्नि पर पूरी तरह से नहीं पके हुए अन्न. या फल का उपयोग करे।
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