Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन ज्योतिष साहित्य : एक चिन्तन
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जैन ज्योतिष साहित्य : एक चिन्तन
र ज्योतिषाचार्य उपायाध्य पं० प्रवर
श्री कस्तुरचन्द जी महाराज
जैन साहित्य विविध विधाओं में लिखा गया है। विश्व में ऐसा कोई भी विषय नहीं है जिस विषय पर जैन मनीषियों ने नहीं लिखा हो । धर्म, दर्शन, इतिहास, भूगोल, खगोल साहित्य और संस्कृति, कला और विज्ञान एवं कथाओं के क्षेत्र में भी उनकी लोह लेखनी अजस्र रूप से प्रवाहित हुई है । यहाँ तक कि आयुर्वेद, ज्योतिष, छन्द, अलंकार, कोश, निमित्त, शकुन, स्वप्न, सामुद्रिक, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, शिल्पशास्त्र, रत्नशास्त्र, मुद्राशास्त्र, धातुविज्ञान, प्राणिविज्ञान पर भी जैन चिन्तकों ने लिखा है । और जिस पर भी लिखा है उस विषय के तलछट तक पहुँचने का प्रयास किया है । अत्यधिक विस्तार में न जाकर संक्षेप में मैं प्रस्तुत निबन्ध में जैन ज्योतिष साहित्य पर अपने विचार व्यक्त करूंगा।
सूर्यादि ग्रह और काल का परिज्ञान करने वाला शास्त्र ज्योतिष कहलाता है ।' अतीत काल से ही अनन्त आकाश मानव के कौतूहल का विषय रहा है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, उपग्रह, तारागण को देखकर उसके मस्तिष्क में विविध जिज्ञासाएँ उबुद्ध हुईं। जैन परम्परा की दृष्टि से 'प्रतिश्रुत' कुलकर के समय मानव सूर्य के चमचमाते हुए प्रकाश को देखकर और चन्द्रमा की चारु चन्द्रिका को निहार कर विस्मित हुए तो प्रतिश्रु त ने सौरमण्डल का परिज्ञान कराया और वही ज्ञान ज्योतिष के नाम से विश्रु त हुआ । वर्तमान में जो ज्योतिष है, उनका मूल स्रोत वही है, पर उसमें कालक्रम से अत्यधिक परिवर्तन हो चुका है।
जैन आगमों में ज्योतिष-शास्त्र का वर्णन सर्वप्रथम दृष्टिवाद में हुआ था । आज दृष्टिवाद विच्छिन्न हो चुका है। वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं उनमें ज्योतिष का वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति में है। सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य आदि ज्योतिश्चक्र का वर्णन है। इसमें एक अध्ययन, २० प्राभूत, उपलब्ध मूल पाठ २२०० श्लोक परिमाण है। गद्यसूत्र १०८ और पद्यगाथा १०३ हैं। इसी प्रकार चन्द्रप्रज्ञप्ति में भी चन्द्र आदि ज्योतिश्चक्र का वर्णन है । डाक्टर विन्टरनित्ज सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति को वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ मानते हैं । डाक्टर शुब्रिग ने लिखा है जैन चिन्तकों ने जिस तर्कसम्मत और सुसम्मत सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है वे अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण हैं। विश्व-रचना के सिद्धान्त के साथ उसमें उच्चकोटि का गणित एवं ज्योतिष विज्ञान भी उपलब्ध है। सूर्यप्रज्ञप्ति में गणित एवं ज्योतिष पर गहराई से चिन्तन किया गया है, अतः सूर्यप्रज्ञप्ति के अध्ययन के बिना भारतीय ज्योतिष के इतिहास को सही दृष्टि से नहीं समझा जा सकता।
सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य के गमनमार्ग, आयु, परिवार प्रमृति के प्रतिपादन के साथ ही पंचवर्षात्मक युग के अयनों के नक्षत्र, तिथि एवं मास का वर्णन है। सूर्यप्रज्ञप्ति के समान ही चन्द्रप्रज्ञप्ति में भी वर्णन है किन्तु वह अधिक महत्वपूर्ण है। सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य के प्रतिदिन की योजनामिकागति निकाली है और उत्तरायन दक्षिणायण की वीथियों का पृथक्-पृथक् विस्तार निकालकर सूर्य और चन्द्र की गति निश्चित रूप से बतायी गयी है। चतुर्थ प्राभूत में चन्द्र और सूर्य का संस्थान दो प्रकार से बताया है—(१) विमान संस्थान (२) प्रकाशित क्षेत्र संस्थान । दोनों प्रकार के संस्थानों के सम्बन्ध में अन्य सोलह मतान्तरों का भी उल्लेख है । स्वमत से प्रत्येक मण्डल में उद्योत और तापक्षेत्र का संस्थान बताकर अन्धकार क्षेत्र का निरूपण किया है। सूर्य के उर्ध्व एवं अधो और तिर्यक ताप क्षेत्र का परिमाण भी प्रतिपादित किया है। चन्द्रप्रज्ञप्ति में छायासाधन का प्रतिपादन है, और छायाप्रमाण पर से दिनमान निकाला गया है। ज्योतिष
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