Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड
जैन-दर्शन में मुक्ति स्वरूप और प्रक्रिया
4 श्री ज्ञानमुनि जो महाराज (जनभूषण)
मुक्ति शब्द का अर्थ
व्याकरणशास्त्र के मतानुसार मुक्ति शब्द मुचल [मुच् धातु से बनता है-मोचनं मुक्तिः । अर्थात् जीव का कर्मों के आवरण से सर्वथा उन्मुक्त हो जाना, जन्म-मरण की अनादि कालीन परम्परा से बिल्कुल छुटकारा प्राप्त कर लेना, सांसारिक दुःखों और आवागमन से पूर्णतया छूटकर अपने वास्तविक स्वरूप में रमण करना, मुक्ति है । वेदान्त की भाषा में आत्मा का ब्रह्म में लीन हो जाना मुक्ति है। कोषकारों के मत में मुक्ति शब्द के “मोक्ष, जन्ममरण से छुटकारा मिलना, आजादी, स्वतन्त्रता" आदि अनेकों अर्थ उपलब्ध होते हैं । इसके अतिरिक्त जिस स्थान पर मुक्त आत्माएं निवास करती हैं, उस स्थान को भी मुक्ति कहा जाता है।
जैन तथा जैनेतर अध्यात्म साहित्य में मुक्ति शब्द को लेकर अनेकों अर्थ-धारणाएं उपलब्ध होती हैं। कुछ एक उद्धरण प्रस्तुत करता हूँ१ विवेगो मोक्खो
-आचाराङ्ग चूणि २७२ -वस्तुतः विवेक ही मोक्ष है। २ सव्वारम्भ परिग्गह-णिक्खेवा, सब्वभूत समया य । एक्कग्ग-मण-समाहणया, अहएतिओ मोक्खो ॥१॥
-बृहत्कल्पभाष्य ४५८५ -सब प्रकार के आरम्भ और परिग्रह का त्याग, सब प्राणियों के प्रति समता और चित्त की एकाग्रता रूप समाधि, बस इतना ही मोक्ष है । ३ कृत्स्नकर्म क्षयो मोक्षः ।
-तत्त्वार्थ सूत्र १०१२ - सम्पूर्ण कर्मों का नाश ही मोक्ष है। ४ अज्ञान हृदय-प्रन्थि-नाशो मोक्ष इति स्मृतः ।
--शिव गीता -हृदय में रही हुई अज्ञान की गाँठ का नष्ट हो जाना ही मोक्ष कहा जाता है । ५ "आत्मन्येव लयो मुक्तिः वेदान्तिक मते मता।"
-वेदान्तिक मतानुसार पर ब्रह्म स्वरूप इश्वरीय मुक्ति में लीन हो जाना मुक्ति है। ६ भोगेच्छामात्रको बन्धः तत्त्यागो मोक्ष उच्यते ।
-योग वाशिष्ठ ४॥३५॥३ -भोग की इच्छामात्र बन्ध है और उसका त्याग करना मोक्ष है। ७ प्रकृति वियोगो मोक्षः
--षड्दर्शन समुच्चय ४३ -सांख्यदर्शन के मतानुसार आत्म रूप पुरुष तत्त्व से प्रकृति रूप भौतिक तत्त्व का वियुक्त हो जाना ही मोक्ष है।
८ चित्तमेव हि संसारो, रागादि-क्लेश वासितम् । तदेव तैविनिमुक्तः, भवान्त इति कथ्यते ॥१॥
--बौद्धदर्शन -रागादि क्लेश से युक्त चित्त ही संसार है। वही यदि रागादि क्लेशों से मुक्त हो जाए तो उसे भवान्त मोक्ष कहते हैं।
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