Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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देखिए - " अणु और आभा" ले० प्रो० जे० सी० ट्रस्ट
४३ देखिए - पूज्य प्रवर्तक श्री अंबालाल जी म० अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० २५२
उत्तराध्ययन ३४।२१-२२ । ३४।२२-२४
वही
ो
४४
४५
४६
४७ वही
૪૨
५०
५१
५२
उत्तराध्ययन सूत्र ३४/२५-२६ ३४।२७-२८
वही ३४।२६-३०१
वही ३४१३१-३२
आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, पृ०, २४५
लोक प्रकाश, सर्ग ३, श्लोक ३६३-३८०
जाणग भवियसरीरा तव्वइरित्ता य सापुणो दुविहा ।
नायब्वा ।
कम्मा नो कम्मे या नो कम्मे हुन्ति दुविहा उ ॥ ३५ ॥ जीवाणमजीवागव दुबिहा जीवाम होइ भयमभवसिद्धियाणं दुबिहानि हो अजीव कम्मनो दव्वलेसा सा दसविहा उ नायब्वा ।
सतविहा ॥३६॥
चंदाण य सूराण य गहगण णक्खत्तताराणं ॥३७॥
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लेश्या : एक विश्लेषण
आभरण छायणा दंशगाण मणि कांगिणी ण जा लेसा ।
अजीव दव्वलेसा नायव्व दसविहा एसा ||३८|| – उत्तराध्ययन ३४, पृ०, ६५० २३ जयसिंह पिट् सप्तमी संयोगजा इयं च पारीरायात्मका परिवृते अन्यत्वदारिकौदारिकमियमित्यादि भेदतः सप्तविधत्वेन जीवशरीरस्य तच्छायामेव कृष्णादिवर्णरूपां नोकर्माणि सप्तविधां जीव द्रव्य लेश्यां मन्यते तथा । -उत्तरा० ३४, टीका० पृ०, ३५०
५४ ताराओ पञ्च वण्णओ ठिपले साचारिणो
- प्रज्ञा० पद २
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- पुष्कर वाणी-०-०--०
दर्जी वस्त्र को काटता है, फिर भी वह दोषी नहीं है ।
डाक्टर मनुष्य के हाथ-पैर आदि अंगों का छेदन करता है, फिर भी वह दंडनीय नहीं है।
राज या मिस्त्री मकान को तोड़ता है, फोड़ता है फिर भी वह अपराधी नहीं है।
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इसी प्रकार गुरु या अधिकारी भलाई और सुधार के लिए किसी को ताड़ना, तर्जना तथा दंड आदि देते हैं तो वे आक्रोश के पात्र नहीं, अपितु हितकारी ही कहलाते हैं।
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