________________
++
४२
देखिए - " अणु और आभा" ले० प्रो० जे० सी० ट्रस्ट
४३ देखिए - पूज्य प्रवर्तक श्री अंबालाल जी म० अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० २५२
उत्तराध्ययन ३४।२१-२२ । ३४।२२-२४
वही
ो
४४
४५
४६
४७ वही
૪૨
५०
५१
५२
उत्तराध्ययन सूत्र ३४/२५-२६ ३४।२७-२८
वही ३४।२६-३०१
वही ३४१३१-३२
आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, पृ०, २४५
लोक प्रकाश, सर्ग ३, श्लोक ३६३-३८०
जाणग भवियसरीरा तव्वइरित्ता य सापुणो दुविहा ।
नायब्वा ।
कम्मा नो कम्मे या नो कम्मे हुन्ति दुविहा उ ॥ ३५ ॥ जीवाणमजीवागव दुबिहा जीवाम होइ भयमभवसिद्धियाणं दुबिहानि हो अजीव कम्मनो दव्वलेसा सा दसविहा उ नायब्वा ।
सतविहा ॥३६॥
चंदाण य सूराण य गहगण णक्खत्तताराणं ॥३७॥
Jain Education International
लेश्या : एक विश्लेषण
आभरण छायणा दंशगाण मणि कांगिणी ण जा लेसा ।
अजीव दव्वलेसा नायव्व दसविहा एसा ||३८|| – उत्तराध्ययन ३४, पृ०, ६५० २३ जयसिंह पिट् सप्तमी संयोगजा इयं च पारीरायात्मका परिवृते अन्यत्वदारिकौदारिकमियमित्यादि भेदतः सप्तविधत्वेन जीवशरीरस्य तच्छायामेव कृष्णादिवर्णरूपां नोकर्माणि सप्तविधां जीव द्रव्य लेश्यां मन्यते तथा । -उत्तरा० ३४, टीका० पृ०, ३५०
५४ ताराओ पञ्च वण्णओ ठिपले साचारिणो
- प्रज्ञा० पद २
********** M 57446446664644+4
- पुष्कर वाणी-०-०--०
दर्जी वस्त्र को काटता है, फिर भी वह दोषी नहीं है ।
डाक्टर मनुष्य के हाथ-पैर आदि अंगों का छेदन करता है, फिर भी वह दंडनीय नहीं है।
राज या मिस्त्री मकान को तोड़ता है, फोड़ता है फिर भी वह अपराधी नहीं है।
For Private & Personal Use Only
४७३ ●
इसी प्रकार गुरु या अधिकारी भलाई और सुधार के लिए किसी को ताड़ना, तर्जना तथा दंड आदि देते हैं तो वे आक्रोश के पात्र नहीं, अपितु हितकारी ही कहलाते हैं।
www.jainelibrary.org