Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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तृतीय खण्ड : गुरुदेव को साहित्य धारा
२३३ .
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२५. कार्यकर्ता सन्मान नहीं, सफलता की आशा से काम करें। अपमान और असफलता का सामना
करने की तैयारी रखें। २६. नया वस्त्र, नया घर और नया वाहन-तीन नये अच्छे लगते हैं किन्तु चिकित्सक, गुरु और
सेवक (मुनीम या नौकर) पुराने ही अच्छे माने जाते हैं। २७. मित्रता में धन का लेन-देन दूध में खटाई का काम करता है। २८. जो मित्र एक बार शत्रु बन गया हो, दुबारा कभी भी उस पर विश्वास करना खतरनाक हो
सकता है। २६. घाव खुजलाने से अधिक फैलता है, मानसिक पीड़ा का अधिक विचार करने से वह और अधिक
गहरी बनती है। ३०. पर-निन्दा करने से दूसरे का बुरा हो या न हो, किन्तु अपने तीन अहित तो हो ही जाते हैं-मन
में संक्लेश, विचारों में मलिनता और वाणी में दुष्टता। ३१. वही धर्म उत्तम है, जो जीवन को उन्नत बनाये । ३२. ज्ञान जब तक अनुभूति (दर्शन या श्रद्धा) नहीं बनता, तब तक वह हृदय को प्रकाशित कैसे करेगा? ३३. ज्ञान-क्रीड़ा करते-करते जब सब तर्क समाप्त हो जाते हैं, तब अनुभूति-स्फुरित होती है । ज्ञानात्मक
अनुभूति ही सम्यक् श्रद्धा है। ३४. शास्त्र तो सिर्फ मानचित्र है, मानचित्र से दिशाबोध तो हो सकता है, किन्तु जब तक उस मार्ग
पर कदम नहीं बढ़ाये जाय, तब तक मार्ग का सही अनुभव नहीं हो सकता। ३५. इस क्षणभंगुर जीवन में अमरता की साधना कर लेने वाला ही चतुर और विवेकी है। ३६. जहाँ मौन से काम होता हो, वहां बोलने से क्या लाभ ! ३७. दूसरों को लूटने व उजाड़ने में आनन्द मनाना क्रूरता है, साधु पुरुष वह है, जो स्वयं को लुटाकर
भी दूसरों को आबाद करे। ३८. घर की खिड़कियाँ बन्द करके बैठने वाला न प्रकाश पा सकता है, न ताजा हवा और न धूप ।
अगर बाहर की धूप और हवा चाहिए तो खिड़कियां खोल दो। अगर ज्ञान का प्रकाश और
अनुभव की ताजी हवा चाहिए तो जिज्ञासा की खिड़कियाँ खुली रखो। ३६. दर्शन की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़ने वाला अगर आत्मा का दर्शन न कर पाया, तो वे पुस्तकें और
वह अध्ययन क्या काम का? ४०. 'मैं' क्षुद्र गली है, गन्दी नाली है, हम' राजमार्ग है, नदी की धारा है। 'मैं' में अभिमान है,
'हम' में स्वाभिमान 'मैं' में एकाकीपन है,
'हम' में संगठन, प्रेम 'मैं' संकुचित है,
'हम' विराट । सामाजिक एवं राष्ट्रीय अभिवृद्धि के लिए 'मैं' की दृष्टि से नहीं 'हम' की दृष्टि से सोचिए। ४१. चोर अपने घर से जैसा प्रेम करता है, अगर दूसरे घर से भी वैसा ही प्रेम करने लगे तो संसार में
चोरी का नामोनिशान न रहे। ४२. दुःख वह मेहमान है, जिसका जितना स्वागत होगा वह उतना ही जल्दी वापस जायेगा। ४३. अगले जीवन में स्वर्ग पाने की चिंता करना उधार खाता है इसी जीवन में आचरण द्वारा स्वर्ग का
वातावरण बनाना नगद खाता है। ४४. व्यक्ति को नहीं, सत्य को पूजो।
शक्ति को नहीं, शान्ति को पूजो।
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