Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ
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नील गगन में चन्दा सोहे तारागण से परिवृत। मधुकर-गुंजित शत दल-दल से सरवर सदा अलंकृत। विद्या-विनय-विवेक युक्त शुभ शिष्यों से त्यों गुरुवर। जन समाज में शोभित होते, संयम भाव समन्वित ॥
-तो लीजिए, यहाँ प्रस्तुत है, गुरुदेव श्री के सुयोग्य | संयमनिष्ठ विद्या एवं चारित्र से शोभित शिष्य परिवार
का संक्षिप्त परिचय । 4-0--0--0--0--0----0--0--0--0-0--0--0-0--0--0--0---05
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राजस्थानकेशरी श्री पुष्करमुनि जो का सन्त व सती
परिवार
0 राजेन्द्रमुनि शास्त्री
श्री हीरा मुनि जी 'जैन सिद्धान्त प्रभाकर'
राजस्थानकेसरी पूज्य गुरुदेव के लघु गुरुभ्राता हीरा मुनि जी हैं। आपकी जन्मस्थली मेवाड़ प्रान्त के अन्तर्गत अरावली पहाड़ को गोद में बसा हुआ 'वास' गांव है। आपका जन्म १९२० को हुआ। आप जाति से क्षत्रिय हैं । आपके पिता का नाम पर्वत सिंह है और माता का नाम चूनी बाई है। परम विदुषी महासती शीलकुवर जी के उपदेश से आपको वैराग्य भावना जागृत हुई। और ई० सन् १९३८ पौष बदी पंचमी को आपकी दीक्षा महास्थविर ताराचन्द जी महाराज के पास 'वास' ग्राम में हुई। आपका स्वभाव सरल व मधुर है और सेवा-भावी है। आपने गुरु-चरणों में रहकर अध्ययन किया। आपकी जीवन-पराग, मेघचर्या, जैन-जीवन, सुबाहुकुमार, और विचार ज्योति, भगवान महावीर आदि मुख्य कृतियाँ हैं । श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री
आपश्री की जन्मभूमि उदयपुर है। विक्रम संवत् १९८८ (सन् १९३१) कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी धनतेरस के दिन आपका जन्म हुआ । आपश्री के पिता का नाम जीवनसिंह जी बरडिया और माता का नाम तीजबाई और आपका नाम धन्नालाल था। नौ वर्ष की उम्र में सद्गुरुणी जी महासती सोहनकुवर जी के उपदेश से प्रभावित होकर विक्रम संवत् १९९७ (सन् १९४१) के फाल्गुन शुक्ला तीज को खण्डप-मारवाड़ में आपश्री ने आर्हती दीक्षा ग्रहण की और सद्गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के प्रथम शिष्य बने । और गुरुदेव के चरणों में रहकर अध्ययन किया । ऋषभदेव : एक परिशीलन, भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन, भगवान् पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन, भगवान महावीर : एक अनुशीलन, जनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, जैन आगम साहित्य, मनन और मीमांसा, धर्म और दर्शन, साहित्य और संस्कृति, चिन्तन की चान्दनी, अनुभूति के आलोक में, विचार रश्मियाँ, विचार और अनुभूतियाँ, विचार वैभव, महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ, फूल और पराग, बुद्धि के चमत्कार, खिलती कलियाँ मुस्कराते फूल, प्रतिध्वनि, अमिट रेखाएँ, महकते फूल, बिन्दु में सिन्धु, बोलते चित्र, सोना और सुगंध, शूली और सिंहासन, श्रावक धर्म, संस्कृति के अंचल में, कल्प-सूत्र आदि ग्रंथों के लेखक हैं। तथा सद्गुरुदेव श्री की और अन्य मुनिवृन्दों की कृतियों का संपादन भी आपश्री ने किया। आपकी बड़ी बहन ने भी दीक्षा ग्रहण की और मातेश्वरी ने भी जिनका नाम क्रमशः महासती श्री पुष्पवती जी और प्रभावती जी है। श्री गणेश मुनिजी शास्त्री
आप गुरुदेव श्री के द्वितीय शिष्य हैं। आपका जन्म उदयपुर के सन्निकट करणपुर ग्राम में सन् १९३१ में हुआ। आपके पिता का नाम लाल चन्द जी पोरवाल और माता का नाम तीज कुवर बाई था । और आपके गृहस्थाश्रम का नाम शंकरलाल था । आपने सन् १९४६ की आसोज शुक्ला दशमी को मध्यप्रदेश में धार नामक स्थान पर गुरुदेव श्री का शिष्यत्व स्वीकार किया। आप लेखक, कवि, वक्ता, गायक व कुशल साधक हैं । आपने साहित्यरत्न और शास्त्री आदि परीक्षाएँ समुत्तीर्ण की हैं। आधुनिक विज्ञान और अहिंसा, अहिंसा की बोलती मीनारें, इन्द्रभूति गौतमः एक अनुशीलन, भगवान महावीर के हजार उपदेश, विचार रेखा, जीवन के अमृतकण, प्रेरणा के बिन्दु, सुबह के भूले, वाणीवीणा, महक उठा कवि सम्मेलन, गीतों का मधुवन, विश्वज्योति महावीर, विचार दर्शन, अनगंजे स्वर, सरल भावना बोध, चरित्र के चमत्कार आदि आपकी महत्त्वपूर्ण लिखित व सम्पादित रचनाएं हैं।
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