Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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रित हैं। यदि हिन्दी अनुवाद के साथ वह सब पाठ्यक्रम सुविधा है। यह सब मुनिजी की दूरदृष्टि का ही परिणाम एक पुस्तक में संग्रहीत हो जाय तो छात्र बहुत लाभान्वित है। उनके द्वारा आरोपित इस वृक्ष का पोषण हो सकते हैं। मुनि जी ने तुरन्त अपने मेधावी और विश्रत करना समाज का दायित्व है । यदि इसे उचित दिशाशिष्य श्री देवेन्द्र मुनि जी की तरफ देखा और मुझे कहा सहयोग प्राप्त हुआ तो एक दिन जैन विद्या का यह कि तुम ऐसी पुस्तक तैयार करो, हम प्रकाशित करा देंगे। महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठान साबित होगा। मुनि जी के दीक्षा उनके इस विद्यानुराग का ही परिणाम है-श्री तारक गुरु स्वर्णजयन्ती के अवसर पर इस संस्थान में कई प्रवृत्तियां जैन ग्रन्थालय, उदयपुर से प्रकाशित प्राकृत-काव्य सौरभ। साकार रूप ग्रहण कर सकती हैं। इस पाठ्यपुस्तक में आचारांग, उत्तराध्ययन, प्रवचनसार, पूज्य गुरुदेव का विद्यानुराग एक साहित्यकार के रूप मूलाचार, पउमचरियं आदि के पाठ्यांश संग्रहीत हैं। में भी प्रकट हुआ है । अपने प्रवचनों व उद्बोधनों में मुनि ___ इसी प्रसंग में मुझे श्री देवेन्द्र मुनि जी से मिलने का जी अनेक मनोहारी दृष्टान्तों व कथाओं का प्रयोग करते सौभाग्य प्राप्त हुआ । श्रद्धं य पुष्कर मुनि जी के विद्या- रहे हैं। इधर उन्होंने जैन साहित्य के विशाल भण्डार से नुराग का जीता-जागता प्रमाण है श्री देवेन्द्र मुनि जी का कुछ कथा-मुक्तकों को चुनकर उन्हें नयी शैली में प्रस्तुत व्यक्तित्व और वैदुष्य । मुनि जी के अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों किया है। 'जैन कथाएँ' के नाम से ३० भाग प्रकाशित से देश-विदेश के विद्वान परिचित हैं। देवेन्द्र मुनि जी के हो चुके हैं। १०० भागों में गुरुदेव ने इन कथाओं को अतिरिक्त अन्य मुनिगणों ने भी जैनविद्या का गहन अध्य- लिखने का संकल्प किया है। कथा साहित्य के इतिहास में यन किया है तथा साहित्य-सृजन में संलग्न हुए हैं। इस पूज्य गुरुदेव का यह नये ढंग का योगदान होगा। प्रकार का बहवत शिष्य परिवार का तैयार होना श्रद्धय मुझे इन कथाओं को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हा पुष्करमुनि जी की सतत प्रेरणा व विद्यानुराग के बिना है, किन्तु ग्रन्थ प्राप्त होने के एक माह बाद में । क्योंकि संभव नहीं था। राजस्थान, गुजरात व दक्षिण भारत के तब तक मेरे बच्चों व पत्नी ने इन कथाओं को छोड़ा ही भ्रमण में आज भी मुनि जी जैनविद्या व प्राकृत के पठन- नहीं । कथाओं की इस रोचकता से स्पष्ट है कि मुनि जी पाठन व प्रचार-प्रसार के लिए प्रेरणाएँ देते रहते हैं। एक अच्छे कथाशिल्पी हैं। उन्होंने प्राचीन चरित्रों को इस उनके इस विद्या प्रेम के कारण ही आज श्रावक समुदाय तरह निर्मित किया है कि उनका व्यक्तित्व बड़ा प्रेरणाभी जैन साहित्य के महत्त्व को न केवल समझने लगा है, दायक बन गया है। कथाओं की भाषा बड़ी सरल व अपितु उसकी सुरक्षा और प्रकाशन में अपना योगदान दे प्रभावोत्पादक है। काव्य-सी सरसता और उपन्यास जैसी
रोचकता से युक्त ये कथाएँ मुनि जी के कथाकार के मुनि जी के विद्यानुराग का तीसरा प्रसंग मेरे सामने व्यक्तित्व को उजागर करती हैं। इस प्रकार के जनोतारक गुरु ग्रन्थालय की योजना है। इस संस्था द्वारा पयोगी साहित्य के निर्माण में संलग्न और जैन विद्या के अनेक दुर्लभ ग्रन्थों का संग्रह व सुरक्षा का प्रयत्न किया अध्ययन-अनुसंधान को निरन्तर प्रेरणा प्रदान करने वाले गया है। कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का नयनाभिराम प्रकाशन पूज्य गुरुदेव के उस विराट् व्यक्तित्व को मेरे अनन्त भी इसके द्वारा हुआ है। उदयपुर में स्थित इसके कार्या- प्रणाम ! जिससे उनका शिष्य समुदाय और समाज आलोलय में विद्यानुरागियों को कई सन्दर्भ ग्रन्थ देखने की कित हो रहा है।
अनोखा व्यक्तित्व
डा० भागचन्द जैन 'भास्कर', नागपुर विश्वविद्यालय फरवरी १९७६ का प्रथम सप्ताह । घोड़नदी (पुणे) एकाएक सूचना मिलती है कि उपाध्याय श्री पुष्कर का सुन्दर स्थानक । प्रातःकालीन दर्शनों के लिए उमड़ती मुनि जी अपने अनन्यविद्वान् शिष्य साहित्यकार श्री देवेन्द्र हुई अपार भीड़ । बाल बच्चे, युवक-बूढ़े, सभी वर्गों में मुनि जी के साथ दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर वापिस अमित उत्साह की अनन्त लहरों का उछाल । जयकार के आ रहे हैं। प्रशान्त मुख, सौम्य आकृति, मन्द चाल और निनादों से प्रतिध्वनित सभागृह का विचित्र वातावरण। स्मित वदनवाला व्यक्तित्व चला आ रहा था अपने श्रद्धालु आचार्य सम्राट आनन्द ऋषि जी के पास बैठा यह सब कुछ परिकर के साथ । विद्वत्ता और गम्भीरता को अपने चादर मैं देख-सुन रहा था और मन ही मन बड़ा प्रसन्न हो रहा में छिपाये वे क्षणभर में ही मेरे सामने आकर खड़े हो था।
गये जैसे वे मुझे पहले से ही जानते हों। मैं कुछ अभिभूत
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