Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
१३५ .
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भारतीय धर्म एवं दर्शन के महान मनीषी, जैनजगत के ज्योतिपुंज, अध्यात्मयोगी
श्रमणश्रेष्ठ राजस्थानकेसरी प्रसिद्धवक्ता, सद्गुरुवर्य श्री पुष्करमुनि जी महाराज
की सेवा में सादर का अभिनन्दन पत्र मनीषी प्रवर !
शैशव के सुषमामय समय में ही पूर्व-संस्कारों से प्रतिबुद्ध होकर आपने १४ वर्ष की अवस्था में परम प्रतापी पूज्य अमरसिंह जी महाराज की सम्प्रदाय के प्रभावक प्रवर्तक गुरुवर्य महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज के सान्निध्य में वैराग्य एवं भक्ति के जिस कठोर साधना पथ का अवलम्बन किया, वह भारत की त्याग-वैराग्यमय उज्ज्वल परम्परा की एक गरिमापूर्ण कड़ी है।
आपने गुरु-चरणों में रहकर अत्यन्त विनय, श्रद्धा एवं भक्ति के साथ जिनागमों का गहन अभ्यास किया है, जैन तत्त्वविद्या, दर्शन, व्याकरण एवं न्याय आदि का तलस्पर्शी अध्ययन-अनुशीलन किया। ज्ञान की तेजस्विता के साथ ही आपके जीवन में विचारों की अद्भुत स्फुरणशीलता, तर्क-पटुता एवं प्रवचन-कुशलता का अपूर्व संगम हुआ है। आपका जीवन सम्यगश्रद्धा, निर्मल प्रज्ञा, अपूर्व गुरुभक्ति तथा उज्ज्वल चरित्रनिष्ठा का चतुमुखी ब्रह्मस्वरूप प्रतीत होता है। अध्यात्मयोगिन्!
तत्त्वज्ञान के साथ-साथ आपके जीवन में अध्यात्म-साधना का अपूर्व संगम हुआ है। आपके विशिष्ट ध्यानयोग की उपलब्धियां तो बड़ी ही चमत्कारी हैं, जिनके आध्यात्मिक प्रभाव का अनेक बार स्पष्ट अनुभव सैकड़ों व्यक्तियों ने किया है। जिनवाणी के अमर उद्गाता!
आपकी वचन-गरिमा अद्भुत है। आपकी वाणी में जादू एवं भावों में हृदय को आलोकित करने की अकथनीय क्षमता है। आपके मधुर व ओजस्वी स्वर में जब जिनवाणी का नाद गंजता है तो श्रोताओं का मन-मयूर सघन घन की गम्भीर गर्जना मानकर नाचने लग जाता है। आपके विचारों में प्राचीनता व नवीनता का सरल सामञ्जस्य जब वाणी द्वारा श्रोताओं को सुनने मिलता है, तो लगता है आपका श्रुतज्ञान असीम है, पठन, मनन और वाचन व्यापक हैं । आधुनिक चिन्तन और प्राचीन तत्त्वान्वेषण का मनोहारी संगम है आपकी वाणी में। आपके लिए व्याख्यान-वाचस्पति, प्रसिद्धवक्ता व प्रवचन-प्रभावक जैसे विशेषण स्वयं में सार्थक हैं। चारित्रनिष्ठ श्रमणश्रेष्ठ!
आपश्री प्रारम्भ से ही उज्ज्वल चारित्रनिष्ठा के पक्षधर रहे हैं, किन्तु एकान्त आग्रही कभी नहीं बने । आपके विचारों में भगवान महावीर का अनेकान्तवाद सजीव हुआ है, और यही कारण है कि चारि
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