Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
जो पत्र पढ़ा, वह उनके गम्भीर अध्ययन को व्यक्त करता था । उनके महत्त्वपूर्ण शोधप्रधान ग्रन्थ देखकर और पढ़कर मैं मुग्ध हो गया । उनके अन्य शिष्यगण भी यथाशक्ति ज्ञान प्राप्ति में संलग्न हैं । स्वयं महाराज श्री विद्वानों का आदर करते हैं, उन्हें प्रगति करने की प्रबल प्रेरणा प्रदान करते हैं। उनका जो भी वैदुष्य है, उसका उद्भव पुस्तकीय विद्या की अपेक्षा प्रातिभ ज्ञान से अधिक हुआ है। उनकी वाणी में सन्त अनुभव की अभिव्यक्ति है, उनके चारित्र्य में सद्गुणों का प्रकाशन हैं, उनके सम्पर्क में जो भी आया उसका उत्कर्ष अवश्य ही हुआ है ।
सत्संग करते हुए रात के बारह बज गये । सभी साथियों को ऐसा आनन्द आ रहा था कि कोई भी उठना नहीं चाहता था । तथापि मुनिश्री की साधना में बाधा न हो अतः हम सभी मुनिश्री का आशीर्वाद लेकर वहाँ से चल दिये । रास्ते में सभी मुनिश्री की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा कर रहे थे । सत्य ही है
इतिहास की पुनरावृत्ति
कबिरा संगत जो कछु गन्धी
किसी व्यक्ति विशेष का सम्मान अथवा अभिनन्दन उस व्यक्ति का ही नहीं किन्तु वह व्यक्ति जिस वर्ग, समाज या परम्परा से जुड़ा है, उस वर्ग समाज या परम्परा का भी सम्मान अथवा अभिनन्दन है । व्यक्ति अपने आप में भिन्न होने पर भी आखिर किसी न किसी समूह का ही अंग होता है । साथ ही यह भी उतना ही सत्य है कि वह व्यक्ति ही है जो किसी वर्ग या समूह को गौरव प्रदान करता है, अपनी विशिष्टताओं से उसे मंडित करता है। और अपने असाधारण विकास द्वारा उसका स्तर ऊँचा उठाता है। भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध ने श्रमण परम्परा की महिमा और गरिमा को जो उत्कर्ष प्रदान किया वह कौन साक्षर नहीं जानता ? वस्तुतः समय-समय पर ऐसे व्यक्ति इस धराधाम पर अवतीर्ण होते रहते हैं जो समग्र मानव जाति को अथवा उसके एक समूह को धन्य बना जाते हैं । व्यक्ति और समाज का ऐसा पारस्परिक प्रगाढ़ सम्बन्ध है ।
उपाध्याय पद विभूषित अध्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनिजी महाराज का व्यक्तित्व इतना उच्च और भव्य है कि वे स्वयं ही अभिनन्दनीय नहीं, वरन् समग्र श्रमणवर्ग को भी उन्होंने अभिनन्दनीय बना दिया है ।
राजस्थान के एक छोटे-से पहाड़ी ग्राम में, ब्राह्मण परिवार में जन्मे श्री पुष्कर मुनि आज श्रमण परम्परा के उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित हैं । यह यह एक ऐसी घटना है जो बलात् हमें अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व के अतीत की ओर देखने को प्रेरित करती है। भगवान महावीर के साधुओं को आगम-वाचना देने का दायित्व ब्राह्मणकुलीन महा - मुनियों (गणधरों) को सौंपा गया था। धर्म के पावन क्षेत्र में वर्ण जाति की कृत्रिम दीवारें ढा दी गई थीं। उसके
अनेकानेक जैनाचार्य हुए
पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल पश्चात् भी ब्राह्मणकुल में प्रसूत हैं जिन्होंने अपनी असाधारण विद्वत्ता से जैनशासन की महान् सेवाएं कीं। अपने प्रखर ज्ञानालोक से शासन- गगन को प्रभासित किया । जैसे इसी इतिहास को जीवित रखने अथवा इसकी पुनरावृत्ति करने के लिए ही राजस्थान केसरी पुष्कर मुनिजी का अवतरण हुआ है ।
मुनिजी निस्सन्देह ज्ञान और किया के धनी हैं। वाग्मिता ने उन्हें वरण किया है। जिन्होंने उनके प्रवचन सुने हैं वे जानते हैं कि उनकी वाणी में कितना ओज है, कितना प्रभाव हैं ! मुर्दा मन में प्राण का संचार कर देने का कितना चमत्कार है ? उनकी वाणी का यह वैभव उनकी अन्तःशक्ति से उत्पन्न हुआ है । अध्यात्मयोग की दीर्घ साधना से सम्पन्न मुनिश्री का व्यक्तित्व अपूर्व है ।
मुनिश्री श्रमणसंघ के उपाध्याय हैं- वास्तविक अर्थ में उपाध्याय हैं। श्रमणसंघ की आशा के केन्द्र हैं। उनकी शिष्यमंडली में श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री जैसे विपुल साहित्य की रचना करने वाले मनीषी हैं । श्रीगणेश मुनि और श्री राजेन्द्र मुनि जैसे विद्वान् सन्त हैं जिनकी साहित्यिक रचनाएँ जैन समाज में प्रख्यात हैं। कम से कम राजस्थान में ऐसा कोई नहीं है जिसकी शिष्यमंडली इतनी समर्थ और विद्वत्तासम्पन्न हो ।
साध की ज्यों गन्धी की बास । दे नहीं तो भी बास सुबास ॥
श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के अभिनन्दन का विचार जिनके मन में आया, मेरे विचार से वे भी अभिनन्दनीय हैं। एक विशिष्ट व्यक्तित्व को प्रकाश में लाना सर्वथा उचित है । आन्तरिक भावना और कामना है कि यह अध्यात्मयोगी चिरंजीवी हों और अपनी साधना से जैनजैनेतर समाज को दीर्घकाल तक लाभान्वित करते रहें ।
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