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प्रायश्चित्त-समुच्चय । __ भावार्थ-जिस तरह सोलह निमित्तभंग संख्या, प्रस्तार, अक्षरक्रप, नष्ट और उद्दिष्ट ऐसे पांच तरहसे वर्णन किये गये हैं उसी तरह इन आठ भङ्गोंको भो समझना चाहिए। प्रथम संख्या निकालते हैं। पहले पहलेके भंग ऊपर ऊपरके सब भंगोंमें पाये जाते हैं अतः उनको परस्पर गुणा करने पर ई ३ ३-पाठ संख्या निकल भाती है। इति संख्या। अव प्रस्तार वतलाते हैं-प्रथम पंक्तिमें आठ जगह एकान्तरित लघु ओर गुरु स्थापन करे १२१२१२१२। द्वितीय पंक्तिमें द्वयन्तरित लघुगुरु स्थापन करे ११२२ ११२२ । तृतीय पंक्तिमें चतुरंतरित लघु-गुरु स्थापन करे ११११.२२२२ । इनकी उच्चारणा बताते हैंसकृत्कारी, सानुवीची यत्नसेवी यह प्रथम उच्चारणा १११ असकृकारोसानुवीची, यल्लसेवी यह द्वितीय उच्चारणा२११ सकृत्कारी असानवीची यत्नसेवी यह तृतीय उच्चारणा १२१ असकृत्कारीअसानुवीची यत्नसेवो यह चतुर्थ उच्चारणा २२१ सकृत्कारी सानुवीची अयत्नसेवी यह पंचम उच्चारणा ११२ असकृत्कारी सानुवीचो अयत्नसेवी यह छठो उच्चारणा २१२ सकृत्कारी मसानवीची अयत्नसेवी यह सप्तम उच्चारणा १२२ असत्कारी असानुवीची अयत्नसेवी यह अष्टम उच्चारणा २२२ संदृष्टि
१२ १२ १२ १२ ११ २२.११ २२ ११ ११ २२ २२