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प्रतिसेवाधिकार। गृहस्थों और अन्य लिंगियोंके करने पर यह संयम सम्यक्त्व
आदि धारण करेगा इस अभिपायसे उनके साथ उचित प्रत्यु'पचार करे तो निर्दोष है-उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं। यदि अपनी मान वड़ाई-निमित्त प्रत्युपचार करे तो पंचकल्याणक प्रायश्चित्तको प्राप्त होता है ॥ ११२॥ अभ्युत्थानेऽ थ वैद्यस्य ग्लानकारणसंश्रयात् । राजासन्नासनारोहे सूरिसूर्यो न दुष्यति ॥११३॥
अर्थ-रोगीके निमित्तको पाकर वैद्यके अर्थ आसनसे उठने और राजाके समीप सिंहासन पर बैठने पर प्राचार्य दोष युक्त नहीं होता। भावार्थ-संघका कोई मुनि बीमार हो जाय उसके इलाजके लिए वैद्य आवे तब उसे देख कर आचार्य अपने आसनसे उठ कर खड़ा हो जाय तथा राजसभामें राजाके पास सिंहासन पर बैठ जाय तो इसका कोई प्रायश्चित्त नहीं हैं ।। ११३॥ भूपालेश्वरमुख्याद्याः पूजयन्यभिगम्य चेत् । शुद्धभावो विशुद्धः स्यात् गौरवे मासिकं भवेत् ॥
अर्थ-राजा व अन्य प्रधान पुरुष, सेठ, सेनापति, पुरोहित मन्त्री श्रादि सापंत आकर यदि पूजा करें उस समय वह साधु मदरहित शुद्धमाव युक्त रहे तो. विशुद्ध है इसका कोई प्रायश्चित्त नहीं। किन्तु यदि वह इस सन्मानको पाकर मेरे इस तरहकी