Book Title: Prayaschitta Samucchaya
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 203
________________ चलिका। तारुण्यं च पुनः स्त्रीणां षष्टिवर्षाण्यनूदितं । तावंतमपि ताः कालं रक्षणीयाः प्रयत्नतः॥ __ अर्थ-स्त्रियोंकी यौवनावस्था साठ वर्ष तक की कहो गई है इसलिए साठ वर्ष तक प्रयत्नपूर्वक आर्यिकानोंको रक्षा करना चाहिए। १२२॥ दर्पण संयुताथार्या विधत्ते दंतधावनं । रसानां स्यात् परित्यागश्चतुर्मासानसंशयं ॥ __ अर्थ-यदि जो कोई भी आर्यिका अहंकारके वशीभूत होकर दंतधावन करे तो उसके लिए चार महीने तक रसोंका परित्याग प्रायश्चित्त है ॥ १२ ॥ अब्रह्मसंयुता क्षिप्रमपनेयापि देशतः। सा विशुद्धिर्वहिर्भूता कुलधर्मविनाशिका ॥ अर्थ-युनाचरण कर संयुक्त आर्यिकाको शीघ्रहो देशके. बाहर निकाल देना चाहिए। ऐसी मार्यिका प्रायश्चित्तसे रहित है अर्थाद उसके लिए कोई भी शुद्धिका उपाय नहीं है और वह गुरुकुल तथा जिनशासनका विनाश करनेवालो है ॥ १२४॥ तदोषभेदवादोऽपि पंडितानां न कल्पते । अन्योक्तं लक्षणीयं न तत्प्रहेयं प्रयत्नतः॥१२५॥ अर्थ-सम्यग्ज्ञानी पुरुषोंको चाहिए कि वे पूर्वोक्त संयमसंबंधी दोषोंको किसीके सामने न कहें और दूसरे लोग कह रहे

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