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प्रायश्चित्तमार्गगमनागमन, सहवास आदि करे तो वह साधर्मी भी प्रायश्रितका भागी होता है। वह आर्यिका प्रायश्चित्तभागिनी हो । इसका तो कहना हो क्या है। भावार्थ-पिता और भाईके साथ यदि आर्यिका कायोत्सर्गादि क्रिया करे तो उनमेंसे कोई भी प्रायश्चित्तके भागी नहीं है। इसके अलावा किसीके साथ भी मार्यिका कायोत्सर्गादि क्रिया करे तो जिसके साथ करे वह भो.. और नो करे वह भो सभी प्रायश्चित्त के भागी होते हैं ॥ १३२ ।। बहून् पक्षांश्च मासांश्च तस्या देया क्षमा भवेत् । बलं भावं वयो ज्ञात्वा तथा सापि समाचरेत्॥ - अर्थ-उस प्रायिकाकी शक्ति, उसका भाव भौर अवस्था जानकर उसे बहुतले पक्षोपवास और मासोपवास प्रायश्चित्त देने चाहिए। उसी तरह वह आर्या भो उस दिये हुए प्रायश्चित्तः . को आदर बुद्धिके साथ करे ॥ १३३ ॥ क्षांत्या पुष्पं प्रवश्यंत्या तदिनात् स्याचतुर्दिनं । आचाम्लं नीरसाहारः कतव्या चाथवा क्षमा ॥. __ अर्थ-प्रायिका जब रजःस्वला हो जाय तव उस दिनसे लेकर चार दिन तक या तो कांजिक भोजन करे या नोरस भोजन करे या उपवास करे ॥ १३४॥ . तदा तस्याः समुद्दिष्टा मौनेनावश्यकक्रिया। व्रतारोपः प्रकर्तव्यः पश्चाच गुरुसन्निधौ ॥१३५॥