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चूलिका!
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परे एएको तथा जिसमें कृषि-जंतु पड़ गये हों, पोप बह रही हो ऐसे शरीरके पानको पदि छवे तो वह जघन्य श्रावक छह उप. बासोंको प्राप्त होता है। भावार्थ-उक्त प्रकारसे परे हुएको और कृमिक्षतको छनेका छह उपवास प्रायश्चित्ल है ॥१४६॥ सुतामातृभगिन्यादिचांडालीरभिगम्य च । अश्नुवीतोपवासानां द्वात्रिंशतमसंशयं ॥१८०॥
अर्थ-अपनी पुत्री, माता, वहन, आदि शब्दसे मासो, सास, पुत्रभार्या आदिको और चांडाल भङ्गो आदिकी स्त्रियोंको सेवन करनेवाला संदेहरहित बत्तीस उपवासोंको प्राप्त होता है भावार्थ-पुत्री आदिके साथ व्यभिचार सेवनका बत्तीस उपवास मायश्चित्त हैं। कारूणां भाजने भुक्ते पीतेऽथ मलशोधनं। . विशोषा पंच निर्दिष्टा छेददक्षैर्गणाधिपैः॥ . __ अर्थ-प्रायश्चित्त शास्त्रोंके वेत्ता प्राचार्यों ने अभोज्यकारुभोंके वर्तनों में खाने और पीनेका प्रायश्चित्त पांच उपवास कहा है। भावार्थ-अभोज कारोंका अर्थ आगे १५४ ३ श्लोकमें कहा जायगा। उनके वर्तनोंमें खाने-पीनेका पांच उपचास प्रायश्चित्त ह ॥ १५ ॥ जलानलप्रवेशेन भृगुपाताच्छिशावपि। बालसंन्यासतः प्रेते सद्यःशाचं गृहिवते ॥ .
अर्थ-जलमें इवकर, अग्निमें जलकर कहींसे भी गिरकर