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प्रायश्चित्त-समुच्चय। 'आगे दश प्रकारके क्षेत्रके नाम बताते हैंअनूपं जांगलं क्षेत्रं भक्तकल्माषशक्तुयुक् ।। रसधान्यपुलाकं च यवागूकंदमूलदं ॥ १३७॥ अर्थ-अनूप, जांगल; भक्तयुक्, कल्माषयुक्, शक्तुयुक, रसपुलाक, धान्यपुलाक, यवागू, कंद और मूल ऐसे क्षेत्रके दश भेद हैं। जहां पर पानो अधिक हो वह अनूप देश है जैसे-मगध; मलय, वानवास, कोंकण, सिंधु आदि। जहां दो इंद्रिय आदि उस जीवोंकी उत्पत्ति तो अधिक हो पर पानी कम हो वह जांगल. देश है। जहां तुष धान्य प्रचुरतासे पैदा होता हो, हमेशह ओदन (भात) खाया जाता हो वह भक्त-क्षेत्र है। जहां पर कुलया मूग, उड़द आदि कोशधान्य (फलीमें उत्पन्न होनेवाले धान्य) अधिक उत्पन्न होते हों वह कल्माष क्षेत्र है। जहां जो खूब पैदा होता हो, सत्तू खूब खाया जाता हो वह शक्तु क्षेत्र है। जहां दूध, दही घी आदि वल बढ़ानेवाले रस अधिक होते हों वह रसपुलाक क्षेत्र है। जहां कटुभांड ( )जौ, गेहूं, शालो. . वीही आदि तृणधान्य उत्पन्न होते हों वह धान्यपलाक क्षेत्र है। जहां यवागू (लपसी) विलेपिका ( ) आदि खूब खाये जाते हों वह यवागू क्षेत्र है। जहां सूरण, रक्ताल, पिंडालु आदि कंद बहुत होते हों वह कंद-क्षेत्र है और जहाँ नाना प्रकारके मूल-हल्दी, अदरख आदि उत्पन्न होते हों वह मूल क्षेत्र है ॥ १३७॥