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प्रायश्चित्तपुरुषोंकी संगति करने पर पंचकल्याणक प्रायश्चित्त दे और अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधुमें अवर्णवाद लगाने पर प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग सहित उपवास प्रायश्चित्त दे॥२०॥ निमित्तादिकसेवायां सोपस्थानोपवासनं । ... सूत्रार्थाविनयाद्येष्वंगोत्सर्गालोचने स्मृते ॥८१॥ __ अर्थ-व्यंजन, अङ्ग, स्वर, छिन्न, भौम, अंतरिक्ष, लक्षण, स्वप्न इन आठ निमित्तों द्वारा आदि शब्दसे, वैद्यकविद्या और मंत्रों द्वारा आजीविका करने पर प्रतिक्रमण और उपवास पायश्चित्त है । तथा सूत्र (शास्त्र) और अर्थका अविनय, निन्हव . आदि करने पर कायोत्सर्ग और आलोचना ये दो प्रायश्चित्त माने गये हैं ॥८॥ सूत्रार्थदर्शने शैक्ष्येऽसमाधानं वितन्वतः। चतुर्थं निन्हवेऽप्येवमाचार्यस्यागमस्य च ॥ ८२॥ __ अर्थ-सूत्र और अर्थका उपदेश करते समय श्रोताओंका समाधान न कर सके तो उसको उपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए तथा आचार्य और आगमका निन्हव करने पर भी उपवास पायश्चित्त देना चाहिए ॥२॥ संस्तराशोधने देये कायोत्सर्गविशोषणे। शुद्धेऽशुद्धे क्षमा पंचाहोऽप्रमादप्रमादिनोः॥.