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चूलिका।
१९१ उनके घर पर औरोंके देखते हुए वारवार भोजन करनेवाला मुनि निश्चयसे पुनर्दीता पायश्चित्तको प्राप्त होता है ।। ६४ ॥ चतुर्विधमथाहारं देयं यः प्रतिषेधयेत् । प्रमादादृष्टभावाच क्षमोपस्थानमासिके ॥१५॥
अर्थ-जो मुनि, देनेयोग्य, अशन, पान, खाद्य, खाद्यके भेदसे चार प्रकारके आहारका भूलसे निपेय करे तो उसके लिए उपवास प्रायश्चित्त और द्वे पवश निषेध गरे तो प्रतिक्रमणपूर्वक पंचकल्याण प्रायश्चित्त है॥६५॥ ज्ञानोपध्यौपधं वाथ देयं यः प्रतिषेधयेत् । प्रमादेनापि मासः स्यात् साध्यावासमथो बहुः ।।
अर्थ-जो कोई मुनि, ज्ञानोपकरण पुस्तक अथवा औषध जो कि देनेयोग्य हैं उनका एक बार भी निषेध करे तो उसके लिए पंचकल्याण प्रायश्चित्त है और यदि साधुओंको देने योग्य वसति आदिका भी निषेध करे तो यही प्रायश्चित्त है। चतुर्विधं कदाहारं तैलाम्लादि न वल्भते । आलोचना तनूत्सगें उपवासोऽस्य दंडनं ।। ९७॥
अर्थ-जो व्याधि आदि कारणों के विना भी देनेयोग्य चार प्रकारक कुत्सित आहारको अथवा तेल कांजिक आदिको नहीं खाता है उसके लिए आलोचना कायोत्सर्ग और उपवास वे प्रायश्चित्त हैं ॥१७॥