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चूलिका।
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उसके लिए प्रतिक्रपणसहित उपवास प्रायश्चित्त है और वमन
विरेचन आदि चिकित्सा करने पर भी यही प्रायश्चित्त है ॥१०॥ ' चंडालसंकरे स्पृष्टे पृष्टे देहेऽपि मासिकं । तदेव द्विगुणं भुक्ते सोपस्थानं निगद्यते ॥१०॥
अर्थ-चांदाल आदिसे मिलने पर तथा उनसे परस्पर देह भिड़ने पर भी पंचकल्याण प्रायश्चित्त है। तथा विना जाने चांडाल आदिके हाथसे दिया हुआ भोजन लेने पर अथवा चांडालोंको देख लेने पर भी भोजन करने पर वही पूर्वोक्त मायश्चित्त प्रतिक्रमणसहित दना कहा गया है अर्थात् पतिक्रमण सहित दो पंच कल्याणक प्रायश्चित्त हैं ।। १०१॥ असंतं वाथ संतं वा छायाघातमवाप्नुयात् । यत्र देशे स मोक्तव्यः प्रायश्चित्तं भवेदपि ॥
अर्थ-जिस देश में अवास्तविक अथवा वास्तविक अपमानको प्राप्त हो वह देश छोड़ देना चाहिए, यही प्रायश्चित्त है। भावार्थ-जिस देशमें अपमान हो वह अपमान चाहे तो गैरठीक हो या ठीक हो अतः उस देशको छोड़ देना ही उसका प्रायश्चित्त है।।१०२॥ दोषानालोचितान पापो यः साधुः संप्रकाशयेत् । मासिकं तस्य दातव्यं निश्चयोइंडदंडनं ॥१०३॥
अर्थ-जो पापात्मा साधु गुरुसे निवेदन किये दोषोंको
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