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प्रायश्चित्त
प्रतिमा, त्रिकालयोग चकारसे अथवा ग्रन्थान्तरोंके अनुसार पर्यायच्छेद, मूलस्थान, तथा परिहार ये प्रायश्चित्त भी आर्यि-: कामोंके लिए नहीं हैं ॥ ११४॥ समाचारसमुद्दिष्टविशेषभ्रंशने पुनः। . स्थैयोस्थैर्यप्रमादेषु दर्पतः सकृन्मुहुः ।। ११५॥
अर्थ-विना प्रयोजन पर घर जाना, अपने स्थानमें या पर स्थानमें रोना, वालकोंको स्नान कराना, उन्हें भोजन-पान कराना, भोजन बनाना, छह प्रकारका आरंभ करना आदि जो विशेष कथन समाचार क्रिया में आर्यिकाओंके लिए किया गया है उसका स्थिर, अस्थिर, प्रमाद और अहंकारवश एक बार
और बहु वार भंग करने पर नीचे लिखा प्रायश्चित्त है। भावार्थ-स्थिर और अस्थिर आर्यिकाओं के प्रमादक्श और अहंकारवश एक बार और वार बार समाचार क्रिया दोष लगने पर क्रमसे नीचे लिखा प्रायश्चित्त है ।। ११५॥ . कायोत्सर्गः क्षमा क्षांतिः पंचकं पंचकं क्रमात् । षष्ठं षष्ठं ततो मूलं देयं दक्षगणेशिना ॥ ११६॥ ___ अर्थ प्रायश्चित्त देनेमें चतुर आचार्य, स्थिर आर्यिकाको मयादवश एक वार समाचार क्रियामें दोष लगाने पर कायोसर्ग और वार वार दोष लगाने पर उपवास प्रायश्चित्त दे, दर्गवश एक बार दोष लगाने पर उपवास और बार बार दोष लगाने पर कल्याण प्रायश्चित्त दे, और अस्थिर आर्यिकाको