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चूलिका।
१८५ राधकी शुद्धि भतिक्रमण सहित कल्याण है और बारबार उपदेश दे तो उसकी मासिक-पंचकल्याण शुद्धि है तथा जिस पूजोपदेशके देनेसे छह निकायके जीवोंका वध होता हो तो उसका प्रायश्चित्त पुनर्दीक्षा है ॥७॥ सल्लेखनेतरे ग्लाने सोपस्थाना विशोषणा। अनाभोगेऽथ साभोगे प्रभुक्ते मासिकं स्मृतं ॥
अर्थ-तुधा और तृषा परीषहसे पीडित हुआ सल्लेखना करनेवाला मुनि तथा अष्टोपवास, पत्तोपवास, मासोपवास आदि उपवासों द्वारा पोड़ित हुआ सल्लेखनान करनेवाला अनि यदि लोगोंके नहीं देखते हुए भोजन कर ले तो उन दोनोंके लिए उस दोषका प्रायश्चित्त प्रतिक्रमणसहित उपवास कहा गया है और जो उक्त दोनों प्रकारके ग्लान मुनि लोगोंके देखते हुए भोजन कर लें तो उनके लिए पंचकल्याण प्रायश्चित्त कहा गया है। स्यात्सम्यक्त्वव्रतभ्रष्टैर्विहारे मासिकं क्षमा। जिनादीनामवर्णादौ सोपस्थानांगसंस्कृतिः)। __ अर्थ-सम्यक्त्वसे भ्रष्ट अर्थात् मिथ्यादृष्टि पुरुषोंके साथ. और व्रतोंसे भ्रष्ट अर्थात दुःशीलता, क्रोध, मान, माया, लोभ अविनय, संघकी निंदा करना आदि दोषोंसे दृषित अवती पुरुपोंके साथ विहार करने पर अर्थात् मिथ्यादृष्टि और अवतो.