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- प्रायश्चित समुच्चय। कोई अपराध हो जाता है तो वे उसो समय आत्मसाक्षो पूर्वक उस दोपका निययसे प्रतीकार कर लेते हैं ॥ १७२ ॥ धैर्यसंहननोपेताः स्वातंत्र्यायोगधारिणः । तद्वपि समुत्पन्नं वहति निरनुग्रहं ।। १७३॥ ___ अर्थ-परम धैर्य और उत्तमसंहननकर सहित वे परम योगी- . श्वर खाधीन रहने के कारण भारोसे भारो भी उत्पन्न हुए दोपको औरोंके अनुग्रहकी अपेक्षा किये विना हो स्वयं दूर कर लेते हैं ।। १७३ ॥ आलोचनोपयुक्ता यच्छुभ्यन्त्यालोचनात्ततः। कृत्वाशेषं च मूलान्तंशुध्यन्ति स्वयमेव ते॥१७४
अर्थ-जो आलोचना-दोष दूर करनेमें उपयुक्त रहते हैं वे निरपेक्ष पुरुष आलोचना मात्रसे शुद्ध हो जाते हैं। तो भो चे दुसरे भी प्रतिक्रमणको आदि लेकर मूलपर्यंतके प्रायश्चित्त अपने आप ग्रहण कर शुद्ध हो लेते हैं ।। १७४॥
यहां तक निरपेक्ष पुरुषोंका वर्णन किया आगे सापेक्षोंका करते हैंआचार्यो वृषभो भिक्षुरिति सापेक्षास्त्रिधा । गीतार्थों वृषभः सूरिः कृत्यकृत्येतरौपुनः ॥१७५
अर्थ- सापेक्ष पुरुष तीन प्रकारके होते हैं। प्राचार्य, दृपभ