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प्रायश्चित्तकोश रातमें गमन करनेका प्रायश्चित्त क्रमसे षष्ठ और उपवास प्रायश्चित्त है ।। ३७॥ सप्रतिक्रमणं मूलं तावंति क्षमणानि च । स्याल्लघुः प्रथमे पक्षेमध्येऽन्त्ये योगभंजने ॥३८॥ ___ अर्थ-देशभंग, महामारी आदि कारणों वश पक्षक शुरूमें योगभंग हो तो प्रतिक्रमणसहित पंचकल्याण प्रायश्चित्त है। पक्षके मध्य भागमें योगभंग हो तो पतके जितने दिन वाकी रहें उतने उपवास प्रायश्चित्त हैं और पक्षके अन्तमें योगभंग हो तो लघुमास प्रायश्चित्त है ॥३८॥ जानुदन्ने तनूत्सर्गः क्षमणं चतुरंगुले । द्विगुणा दिगुणास्तस्मादुपवासाः स्युरंभसि ॥ ___ अर्थ-घुटनेपर्यंत पानीमें होकर जावे तो एक कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है । घुटनेसे चार अंगुल ऊपर पानीमें होकर जानेका का एक उपवास प्रायश्चित्त है। इससे चार चार अंगुल अपर पानोंमें होकर जानेका दूने दुने उपवास मायश्चित्त हैं ॥३६॥ दंडैः षोडशभिर्मेये भवन्त्येते जलेंजसा। कायोत्सगोपवासास्तु जन्तुकीर्णे ततोऽधिकाः॥
अर्थ-ये जो कायोत्सर्ग और उपवास कडे गये हैं वे सोलह धनुष (चौसठ बाथ) पर्यंत लंबे फैले हुए जल-जन्तनोंसे रहित | जलमें होकर जानेके हैं। न्यूनके नहीं। तथा जलजन्तुसे भरे