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चलिका। हो कर चारकोश, गर्मीमें मासुक मार्ग हो कर नो कोश और अमासुक मार्ग होकर छह कोश गमन करे तो सबका प्रायश्चित्त एक एक उपवास है। यह प्रायश्चित्त दिनमें गमन करनेका है रातमें गपन करनेका आगेके श्लोकोंसे बताते हैं। यहां वन्हि से तीन, स्वरसे छह और ग्रहसे नौ संख्याका ग्रहण है ॥ ३५॥ दशमादष्टमाच्छुद्धोरात्रिगामी सजन्तुके । विजंतौ च त्रिभिः क्रोशैर्मार्गे प्रावृषि संयतः॥
अर्थ-वरसातमें अमासुक और प्रासुक यागे होकर तीन कोश रात्रिमें गमन करनेवाला संयत क्रमसे दशम-लगातार चार उपवास और अष्टम-लगातार तीन उपवास करनेसे शुद्ध होता है। भावार्थ-बरसातके दिनोंमें अपासुक मार्ग होकर तीन कोश रातमें गमन करनेका चार निरंतर उपवास और पासुक मार्ग होकर गमन करनेका तीन निरन्तर उपवास प्रायश्चित्त है ॥ ३६॥ हिमे कोशचतुष्केणाप्यष्टमं षष्ठमीयते । ग्रीष्मे कोशेषु षट्सु स्यात् षष्ठमन्यत्र च क्षमा॥' . अर्थ-शीतकालमें अप्रासुक मार्ग होकर ओर पासुक मार्ग हो कर रातमें चार कोश गमन करनेका प्रायश्चित्त क्रमसे निरन्तर तीन उपवास और निरन्तर दो उपवास है। तथा गर्मीकी मौसिममें अमासुक मार्ग होकर और प्रासुक मार्ग होकर छह,