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चूलिका। नहीं रहता उसको स्वाध्याय अर्थात अपराजित परम मंत्रका
जाप और परमात्माका अध्ययनरूप प्रायश्चित्त देना चाहिए । ' अब पचप परिग्रह साग व्रतके विषयमें कहते हैं
उपधेः स्थापनालोभादैन्यादानप्ररूढितः। संग्रहात् क्षमणं पष्ठमष्टमं मासमूलके ॥३२॥ __ प्रध-जा मुनि गृहस्थोंके उपकरण अपने पास रक्खे तो उपवास प्रायश्चित्त है। सोना, चांदो आदि परिग्रहमें लोभ करे तो पष्ठोपवास प्रायश्चित्त है । मांग कर सोना, चांदी आदि परिग्रह ग्रहगा करे तो अहम-तीन उपवास प्रायश्चित्त है। प्रसिद्ध ग्रहण संक्रान्ति आदिमें सोना, चांदो आदिका संग्रह करे तो मासिक प्रायश्चित्त है और अपनी इच्छानुकूल सोना चांदो, मणि, मुक्ताफल आदि परिग्रहका संचय करे तो मूल-पुनीता प्रायश्चित्त है ॥२॥
अब रात्रिभुक्तिविरति नायके अणुव्रतके विषयमें कहा जाता है:-- रात्रौ ग्लानेन भुक्ते स्यादेकसिंश्च चतुर्विधे । उपवासः प्रदातव्यः षष्ठमेव यथाक्रमं ॥३३॥
अर्थ-व्याधि विशेप, परिश्रम, नानामकारके महोपवास पादिस पीडित हुना साधु कोदय-वश प्राण वचना कठिन मालूम पड़ने पर रात्रिमें कोईसा एक आहार और चारों प्रकार