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प्रायश्चित्तदसरी रात्रिके चरमभागमें है जो तोन घड़ी रात बाकी रह जाने से पहले पहले है। इस प्रकार स्वाध्यायका काल है इस कालके भेदसे स्वाध्याय भी चार प्रकारका है। इस चार प्रकार के स्वाध्यायको न करने और उसके कालका अतिक्रमण करनेका. प्रायश्चित्त कायोत्सर्ग है ॥ ६॥ प्रतिमासमुपोषः स्याचतुर्मास्यां पयोधयः । .: अष्टमासेष्वथाष्टौ चद्वादशाव्देप्रकीर्तिताः॥६५॥ __ अर्थ-प्रतिमास-पहीने महीने में एक उपवास, चार महीने बीतने पर चार उपवास, आठ महीने बीतने पर आठ उपवास वारह यहोने बीतने पर बारह उपवास अवश्य करने चाहिए ॥ . पक्षे मासे कृतेः षष्ठं लंघने सप्रतिक्रमः। .. अन्यस्या द्विगुणं देयं प्रागुक्तं निर्जरार्थिनः ॥६६॥
अर्थ-पाक्षिक क्रिया और मासिक क्रियाके उल्लंघन करने पर कोंकी निर्जराके अभिलाषी साधुको प्रतिक्रमण सहित दो उपवास देने चाहिए। और चातुर्मासिक क्रिया तथा सांवत्सरिक क्रियाके अतिक्रमणका प्रायश्चित्त पूर्वोतसे दना देना चाहिए अर्थात् चातुर्मासिक क्रियाके उल्लंघनका आठ उपवास और सांवत्सरिक क्रियाके उल्लंघनका चौवोस उपवास पतिपण सहित प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥६६॥ . . . . ..