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चूलिका । अर्थ-पांच समिति, इंद्रियनिरोध, केशलोच, भूशयन, अदंतधावन इन मूलगुणोंके एक बार भंग होनेपर कायोत्सर्ग . और वार बार भंग होनेपर उपवास प्रायश्चित्त है तथा पंच महाव्रत, छह आवश्यक, अचेलकत्व, अस्नान, स्थिति भोजन
और एक भक्त इन मूलगुणोंके एक वार भंग होनेपर पतिक्रयण सहित उपवास ओर वार वार भंग होनेपर पुनःक्षा प्रायश्चित्त है। भावार्थ-व्रतोंका भंग जघन्य दजैसे लेकर उत्कृष्ट दर्जतक अनेक प्रकारका है-जैसे जैसे अधिक दोष संभव हो वैस वैसे बढ़ता हुआ प्रायश्चित्त है। जैसे समिति आदि प्रत्येक व्रतोंका अति-स्तोक भंग होनेर मिथ्याकार, उससे अधिक भंग होनेपर आत्मनिन्दा, उससे भी अधिक भंग होनेपर गर्दा बससे भी अधिक भंग होने पर आलोचना, उससे भी अधिक भंग होनेपर लघुकायोत्सर्ग, उससे भो अधिक भंग होनेपर मध्यम कायोत्सर्ग उससे भी अधिक भंग होने पर बढ़ते बढ़ते एक सौ आठ उछ्वास प्रमाण महाकायोत्सर्ग पर्यंत प्रायश्चित्त है। यह एक बार भंग होनेका प्रायश्चित्त है। चार वार मंगविशेप होनेका पुरुमंडल, निर्विकृति, एकस्थान और प्राचाम्ल मायश्चित्त वहां तक है जहां सर्वोत्कृष्ट भंग हाने पर प्रतिक्रमणं सहित उपवास प्रायश्चित्त है। तथा अहिंसादि व्रतोंके एक पार भंग होनेपर प्रतिक्रमण सहित उपवास प्रायश्चित्त है और वार वार भंग होनेपर वहो प्रायश्चित्त अहंकार युक्त, अभयनचारी, अस्थिर भादि पुरुषषिशेपके अपेक्षासे बढ़ता हुआ षष्ठोपवास.