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प्रायश्चित्तविशेष, पृथ्वीविशेषके ऊपर एकवार मल-मूत्र विसर्जन करे तो. कायोत्सर्ग और बार बार करे तो उपवास प्रायश्चित्त हैं ॥१२॥ ___ आगे पंचेन्द्रियनिरोधके दोषोंका प्रायश्चित्त बताते हैंस्पर्शादीनामतीचारे निःप्रमादप्रमादिनाम् ।। कायोत्सर्गोपवासाः स्युरेकैकपरिवर्धिताः ॥६३॥ ___ अ-स्पर्शन आदि पांचों इंद्रियोंको अपने अपने विषयोंसे न रोकनेका अप्रमत्त और प्रमत्त पुरुषके लिए एक एक वढते हुए कायोत्सर्ग और उपवास प्रायश्चित्त हैं। भावार्थ-कठोर, नर्म, भारी, हलका, ठंडा, गर्म, चिकना और रूखाके भेदसे
आठ प्रकारका स्पर्श हैं जो स्पर्शन इन्द्रियका विषय है। चिर्परा, कडुआ, कषायला, खट्टा, मीठा और खारा ये छह रस हैं जो रसना इन्द्रियके विषय हैं। गन्ध दो प्रकारका है सुगन्ध और दुर्गन्ध, जो प्राणइन्द्रियका विषय है। काला, नीला, पीला, सफेद और लाल इस तरह छह प्रकारका रूप है जो नेत्र इन्द्रियका विषय है। तथा षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत
और निषाद यह छह प्रकारका शब्द है जो श्रोत्रेन्द्रियका विषय है। इन विषयोंसे पांचों इंद्रियोंको न रोकनेका इस प्रकार ' प्रायश्चित्त है। अप्रमत्त के लिए तो एक एक बढ़ते हुए कायोत्सर्ग
है जसे-स्पर्शन इंद्रियका एक कायोत्सर्ग, रसनाके दोप्राणके तीन, चतुके चार और श्रोत्रके पांच कायोत्सर्ग। प्रपत्तके लिए एक एक वढते. हुए उपवास हैं जैसे-स्पर्शन इंद्रियको