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प्रायश्चित्तमूग, उड़द, राजमाप आदि चीजें वोज कही जाती हैं सोंभाजन ( ), कैरेंड ( ), मूला आदिको मूल कहते हैं। अज्ञानवश अर्थात् आगमको न जानता हुआ अथवा ये चीजें अप्रासुक हैं ऐसा न जानता हुआ यदि इन कन्द मूल, फल वीज, आदिको एक बार खाय तो कायोत्सर्ग और वार वार खाय तो उपवास प्रायश्चित्त है। आगम अथवा अप्रासुक जानता हुआ भी व्याधिविशेष पीड़ित होकर एक बार खाय तो उपवास
और बार बार खाय तो कल्याण प्रायश्चित्त है। और अहंकार वश-निःशंक होकर छोलकर रसायन आदिके निमित्त एक वार खाय ता पंचकल्याण और बार बार खाय तो मूल-पुनदीक्षा प्रायचित्त है॥५३॥ कुड्याद्यालंव्य निष्ठूय चतुरंगुलसंस्थितिम् । त्यक्त्वोक्त्वा क्षमणं ग्लाने मुक्ते षष्ठं तथा परे ।
अर्थ-दोवाल, स्तंभ आदिका सहारा लेकर, खकार थूक कर, चार अंगुल प्रमाण पैरोंके अंतरको सागकर और कुछ कह कर यदि उपवास आदिसे पीडित हुआ कोई मुनि भोजन करे तो उपवास प्रायश्चित्त है। और यदि उपवासादिसे पीडित न होकर साधारण अवस्थामें उक्त प्रकारसे भोजन करे तो षष्ठ मायश्चित्त है॥५४॥ काकादिकान्तरायेऽपि भग्ने क्षमणमुच्यते। .. गृहीतावग्रहे त्यागः सर्वं भुक्तवतः क्षमा ॥५५॥