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पुरुषाधिकार । द्विप्रकाराः पुमांसोऽथ सापेक्षा निरपेक्षकाः । नियंपेक्षाः समर्थाः स्युराचार्याचास्तथेतरे॥ __ अर्थ-पुरुष दो तरहके होते हैं एक सापेक्षा मो प्राचार्योंके अनुग्रहको आकांक्षा रखते हैं कि आचार्य हम पर अनुग्रह करें। दूसरे निरपेक्ष, जो आचार्योंके अनुग्रहकी आकांक्षा नहीं रखते। इनमें निरपेक्ष जो आचार्य आदि हैं वे पुरुप हैं जो समर्थमहाशक्तिशाली होते हैं। तथा इनके अलावा दूसरे सापेक्ष होते. हैं।। १७० ।। गीतार्थाः कृतकृत्याश्च नियंपेक्षा भवन्त्यमी।
आलोचनादिका, तेषामष्टधा शुद्धिरिष्यते ॥१७१ ___ अर्थ-ये निरपेक्ष पुरुष गोतार्थ और कृतकृत्य होते हैं। जो नौ और दश पूर्व धारो हैं उन्हें गीतार्थ कहते हैं और जिन्हों-- ने नौपूर्व और दशपूर्वको ग्रन्थ और रूप जानकर अनेक बार उनका व्याख्यान किया है वे कृतकृत्य कहे जाते हैं। अतः उनके लिए आलोचनापूर्वक आठ प्रकारकी शुद्धि कही गई है। तेऽप्रमत्ताः सदा संतो दोषं जातं. कथंचन । तत्क्षणादपकुर्वति नियमेनात्मसाक्षिकं ॥१७२।।
अर्थ-वे निरन्सपेत पुरुष सदाकाल प्रमादरहित होते हैं। यदि किसी कारसरश कोई दोप उत्पन्न हो जाता है-उनसे