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प्रायश्चित्त-समुच्चय । mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmminen.
तक करना। इसी तरह निर्विकृति और आचाम्ल, निर्विकृति और एकस्थान, निर्विकृति आर उपवास आदि द्विसंयोगी. शलाकारोंका सान्तर और निरन्तर क्रम समझना चाहिए। दो दो, तोन तीन, चार चार, पांच पांच, छह छह आदि द्विसंयोगी. शलाकाओंको करके सामान्य आहार करना निरन्तर दिसंयोगी शलाकाओंके करनेका क्रम है। इसो तरह त्रिसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगो शलाकाओंको सान्तर और निरन्तर छह महीने तक करना चाहिए। एवं षष्ठोपवास, (बैला) अष्टमोपवास (तेला) दशमोपवास (चौला) द्वादशोपवास (पचौला) पक्षोपवास, मासोपवास आदि तथा एककल्याण पंचकल्याणक आदि विशेष तपोंका संग्रह भी यहां पर समझना चाहिए। इस तरह यह कल्पव्यवहार प्रायश्चित्तका अभिप्राय है ।। २१० ॥ अपमृष्टे परामर्श कंडूत्याकुंचनादिषु । जल्लखलादिकोत्सर्गे पंचकं परिकीर्तितम् ।।.. __ अर्थ-विना प्रतिलेखन की हुई वस्तुओंको स्पर्श करनेका खाज सुजानेका हाथ पैर आदिके संकोचने, पसारने, आदि शब्दसे उद्वर्तन परावर्तन आदि क्रियाविशेषकें करनेका, तथा अप्रतिलेखित स्थानमें मल-मूत्र करने कफ डालने आदिका. कल्याणक प्रायश्चित्त कहा गया है ॥२११ ॥ दंडस्य च करोद्वर्ते अंधासंपुटवेशने। - ६ तमंगादाने च पंचकं ॥ २१२ ॥