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छेदाधिकार। . १२५ चाहिए। यद्यपि प्रायश्चित्त पापोंकी शुद्धि करनेवाला है पर तो भी शक्तिके अनुसार किया हुआ हो पापोंका नाश करता है। शक्तिके बाहर करनेसे आर्तध्यान आदि अशुभ परिणाम उत्पन्न हो पाते है जिनका फल अशुभ हो बताया गया है। उपयुक्त सान्तर तथा निरन्तर तप करनेका विधान इस प्रकार है। प्रथम प्रत्येक भंगकी अपक्षासे बताते हैं। एक दिन छेड़ कर निर्विकृति
आदि करनको सान्तर कहते हैं तथा एक दिन न छोडकर दो दो दिन तोन तीन दिन आदिदिनों तक लगातार करनको निरंतर कहते हैं। सोही करते हैं। एक दिन निर्विकृति दूसरे दिन सामान्य आहार, फिर निर्विकृति फिर दूसरे दिन सामान्य आहार इस तरह एकान्तरसे पूर्ण छह महीने तक निर्विकृति की जाती है। दो दो निर्विकृति एक सामान्य आहार फिर दो दो निर्विकृति एक सामान्य आहार इस तरह निरन्तर छह महीने तक निविकृति समभाना चाहिए। इसी तरह तीन तीन निर्विकृति एक सामान्य प्राहार तथा चार चार निर्विकृति एक सामान्य आहार, तथा पांच पांच निविकृति एक सामान्य प्राहार इत्यादि विधिके अनुसार निरन्तर छह महीने तक निर्विकृतिका क्रम समझना चाहिए। जिस तरह सान्तर और निरन्तर निर्विकृतिक करनेका क्रम है उसी तरह पुरु 'डल, आचाम्ल, एकस्थान और उपवासका समझना चाहिए यह हुआ एक एक भंगकी अपेक्षा। द्विसंयोगी भंगोंकी अपेक्षा निविकृति और पुरु मंडल में दो करके सामान्य प्राहार करना इस तरह छह महीने