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चलिका। सर्वे खामिवितीर्णस्य योग्यो ज्ञानोपधेरपि । स्वामिना वा वितीर्यते यस्मै सोऽपि तमर्हति ॥
अर्थ-जिस उपकरणका जो स्वामी है उसके द्वारा वितीण किये गये उस उपकरणको ग्रहण करनेको सभी साधु योग्य हैं चाहे वे अन्य आचागेकं भी शिष्य क्यों न हों। परन्तु ज्ञानोपधि-पुस्तकके योग्य तो वही है जो ज्ञानो है। अथवा पुस्तकका स्वामी साधु जिस साधुको वह अपनो पुस्तक दे वही उसके योग्य है ।। २० ॥ एवं विधिं समुलंध्य यः प्रवर्तेत मूढधीः । बलवन्तं समासृत्य यो वादत्ते प्रदोषतः॥२१॥ सर्वस्वहरणं तस्य षण्मासः क्षमणं भवेत् । योऽन्यथापि तमादत्ते तस्य तन्यौनसंयुतं ॥२२॥
अर्थ-इस उपर्युक्त व्यवस्थाका उल्लंघनकर जो मूर्ख-बुद्धि साधु मनमानी प्रति करता है अथवा जो बलवान् राजा आदिके पास जाकर कैप का उपकरणको ग्रहण करता है उसके लिए उसका सर्वस्वहरण -- सम्पूर्ण पुस्तक आदि छीन लेना और छह मास पर्यन्त एकान्तरोपवास करना प्रायश्चित्त है। तथा जो कोई साधु और भी किन्हीं उपायोंसे उस उपकरणको ग्रहण करता है उसके लिए भी बही-मोनयुक्त छह मास तक एकान्तरोपवास दंड है ।। २१-२२॥