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प्रायश्चित्त
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पंचन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च - सोच्छ्वासनिश्वासयुतास्तथायुः। प्राणा दशैते भगवद्भिरुक्ता
स्तेषां वियोगकिरणं तु हिंसा ॥१॥ इन दश प्राणोंमेंसे एकेन्द्रिय जीवके स्पर्शन इंद्रिय, कायवल, उछ्वास निश्वास और आयु ये चार प्राण होते हैं। दो इंद्रिय जीवके स्पर्शन और रसना ये दो तो इंद्रियां कायवल
और बचनवल ये दो वल, उच्छ्वासनिश्वास और आयु ये छह.. प्राण होते हैं। तेइंद्रियजीवके स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन. तो इंद्रियां, कायवल और वचनवल येदो वल, उच्छ्वास.. निश्वास और आयु ये सात प्राण होते हैं। चौइंद्रियजीवके स्पर्शन, रसना, घाण, चतु, कायवल, वचनवल, उवासनिश्वास
और आयु ये आठ प्राण होते हैं। असंज्ञिपंचेंद्रियके पांचों इंद्रियां, कायवल, वचनवल, उछ्वास निश्वास और आयु ये नो प्राण होते हैं। तथा संज्ञिपंचेन्द्रियके पूर्वोक्तः दशों प्राण. होते हैं। इन इंद्रिय और प्राणोंकी गणनाके अनुसार उत्तर गुणधारी प्रयत्नवान् स्थिर अस्थिर, उत्तर गुणधारी अप्रयत्न बान स्थिर अस्थिर, मूलगुणधारी प्रयत्नवान् स्थिर अस्थिर और मूलगुणधारी अप्रयत्नवान् स्थिर अस्थिर साधुके कायोसर्ग.और उपवास प्रार्याश्चत्तोंकी योजना कर लेना चाहिए। सोही कहते हैं। उत्तरगुणधारी प्रयत्नवान् स्थिरके
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