Book Title: Prayaschitta Samucchaya
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 156
________________ प्रायश्चित्त असंख्यात प्रदेशी असंख्यात लोक हैं इन सव भावोंको जानकर प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥१०॥ साधूपासकबालस्त्रीधेनूनां घातने क्रमात् । याववादशमासाः स्यात् षष्ठमर्धिहानियुक् ॥. __ अर्थ-साधू. उपासक, बालक, स्त्री और गौ इनके वधका प्रायश्चित्त क्रमसे आधी आधी हानिकर सहित बारह मास तकके षष्ठोपवास (वेला) हैं। भावार्थ-रत्नत्रयधारी साधुकी हत्या करने पर एक वेला कर पारणा करे फिर वेला कर पारणा करे एवं वारह मास तक षष्ठोपवास करे। श्रावककी हसा करने पर छह मास पर्यंत, बालकको हत्या करने पर तीन मास पर्यंत, स्त्रीको हत्या करने पर डेढ़ मास पर्यंत और गायकी हत्या करने पर तेइस दिन पर्यंत षष्ठोपवास करे ॥१५॥ पापंडिनों च तद्भक्ततधोनीनां विधातने। आषण्मासे भवेत् षष्ठं तदर्धाधं ततः परं ॥ १२ ॥ अर्थ-पाखंडो, उनके भक्त और भक्तोंके कुटुम्बीवर्गकी "हत्या करने पर क्रमसे छह महोने पर्यंत, उससे आधे, उससे आधे षष्ठोपवास प्रायश्चित्त हैं। भावार्थ-भौतिक, मितु, पारिबानक, कापालिक आदि अन्यलिंगियोंको पारखंडी कहते हैं उनके मारने- . का प्रायश्चित्त छह मास पर्यंत पूर्वोक्त तरह षष्ठोपवास करना है माहेश्वर आदि उन पाखंडियोंके भक्त हैं उनके विघातका पाय . .

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