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प्रायश्चित-समुच्चय। मांगे उतने दिनों तक प्रतिदिन पांच पांच, दश दश और पंद्रह पंद्रह गुणी दीक्षा छेद देनी चाहिए ।। २३० ॥ प्रत्यहं छेदन भिक्षोर्दशाहानि परे गणे। दशपंच वृषस्यापि विंशतिर्गणिनः पुनः॥ __ अर्थ-परगणमें सामान्य साधुके लिए प्रतिदिन दशदिनका प्रधानमुनिके लिए पंद्रह दिनका और आचार्यके लिए वीस दिन का दीक्षा छेद मायश्चित्त है । भावार्थ-कोई सामान्य साधु कलह करके विना क्षमा कराये परगणमें चला जाय वह यदि एक दिन क्षमा न मांगे तो दश दिन, दो दिन न मांगे तो वीस दिन एवं प्रतिदिन दश दश दिनके हिसावसे उसकी दीताका छेद कर देना चाहिए। तथा प्रधान मुनि कलह करके विना क्षमा कराये परगणमें चला जाय वह यदि एक दिन तमा न मांगे तो पंद्रह दिन, दो दिन न मांगे तो तीस दिन, एवं प्रतिदिन पंद्रह पंद्रह दिनके हिसावसे उसकी दीक्षाका छेद कर देना चाहिए और आचार्य कलह करके विना क्षमा मांगे परगणमें चला जाय वह यदि एक दिन क्षमा न मांगे तो वीस दिन, दो दिन क्षमा न मांगे तो चालीस दिन एवं प्रतिदिन तीस तीस दिनके हिसाबसे उसकी दीक्षा छेद देनी चाहिए ।। २३१॥ . इत्यादिप्रतिसेवासु च्छेदः स्यादेवमादिकः। छेदेनापि च संछिंद्याद्यावन्मूलं निरन्तरम् ॥ . . .
अर्थ-इसादि दोषोंके सेवन करने पर इस तरहका छेद