________________
Rasin
प्रायश्चित्त-चूलिका।
ग्रन्यके आरंभमें ग्रन्धकर्ता निर्विघ्न शास्त्र समाप्तिके लिए और शिष्टाचारके परिपालनके लिए प्रथम इष्ट देवताको नमस्कार करते हैं:योगिभियोगगम्याय केवलायाविनाशिने। ज्ञानदर्शनरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने ॥१॥. । अथे जो योगियों द्वारा ध्यानसे जाने जाते हैं, केवलशुद्ध हैं, अविनाशी हैं, केवलज्ञान ओर केवलदर्शन तथा इनके अविनामावी अनन्तवीर्य और अनन्तसुख-स्वरूप हैं ऐसे परमात्मा को नमस्कार हो॥१॥
इसतरह अतीत अनागत और वर्तमानके विषय, सामान्यकी अपेक्षासे एक सिद्ध परमेष्ठीको प्रथम नमस्कार कर उसके अनन्तर प्रायश्चित्त चूलिकाका प्रारंभ किया जाना हैमूलोत्तरगुणेष्वीषद्विशेषव्यवहारतः। साधूपासकसंशुद्धिं वक्ष्ये संक्षिप्य तद्यथा ॥२॥
अर्थ-मूलगुण और उत्तरगुणोंके विषयमें विशेष प्रायश्चित्त शास्त्रके अनुसार यति और श्रावकोंको शुद्धि संक्षेपसे कही जाती है, वह इस प्रकार है। भावार्थ-मूलगण और उत्तर