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छेदाधिकार। हाथोंमें मुद्दर पकड़ कर तोड़ने-फोडने पर लघुरतुर्मास ओर दोनों हाथोंमें मूसल पकड़कर तोड़ने-फोड़ने पर गुरुचतुर्मास प्रायश्चित्त होता है ॥ २१८॥ लघु गुरुं तनुत्सास्त्रीनू मासतोऽश्नुते ।
आवश्यकमकुवाणश्चतुर्मासांस्तथाविधान् ॥ ___ अर्थ-रोग आदिसे पीड़ित होकर एक माह तक वंदना अतिक्रमण और कायोत्सर्ग इन तान आवश्यकोंको न करे तो इस अपराधका प्रायश्चित्त एक लघुपास है। और यदि दर्प (अहंकार) से न करे तो उस अपराधका प्रायश्चित्त एक गुरुमास है। तथा यदि व्याधिवश सभी आवश्यकोंको न करे तो लघुचतुर्यास प्रायश्चित्त है आर नोरोग हाकर भो परवशताके कारण याद इन सभी आवश्यक क्रियाको न करे तो गुरुचतुमसि प्रायश्चित्त है ।। २१६॥ आधाकर्मणि राजान्धस्यार्याभ्युत्थानतस्तथा । असंयातभिवादे च मासस्याधश्चतुर्गुरुः ॥२२०॥ __अर्थ-छहों जीवनिकायोंको वाधा पहुंचानेवालो निकृष्ट क्रियाओं द्वारा उत्पन्न हुआ आहार लेने पर, राजर्पिड ग्रहण करने पर, आर्यिकाको आती देखकर उसका विनय करनेके' . निमित्त सन्मुख जाने पर और असंयतजनोंको वंदना कर लेने पर एक माह पूर्ण न होने तक चार गहमास प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥२२॥