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प्रायश्चित्त-समुच्चय ! निश्चययुक्त तपको प्रायश्चित्त कहते हैं। अथवा प्राय नाम साधुलोकका है उनका चित्त जिस कर्मके करने में है वह प्रायश्चित्त है. अथवा प्राय नाम अपराधका है और चित्त नाम विशुद्धिका है. अपराधकी विशुद्धिको प्रार्या ___ यह प्रायश्चित्त प्रमादजनित दोषोंको दूर करनेके लिए, भावोंकी अर्थात् संक्लिष्ट परिणामोंकी निर्मलता के लिए, अन्तरंग परिणामोंको विचलित करनेवाले दोषोंको दूर करनेके लिए, अनवस्था अर्थात् अपराधोंकी परंपराका विनाश करनेके लिए, प्रतिज्ञात व्रतोंका उल्लंघन न हो इसलिए और संयमको दृढ़ताके लिए किया जाता है ॥ १८०॥
. . प्रायश्चित्त कौन है ? यह बताते हैं - प्रायश्चित्तविधावत्र यथानिष्पन्नमादितः। . दातव्यं बुद्धियुक्तेन तदेतदशधोच्यते ॥ १८१॥ अर्थ-प्रायश्चित्त देना साधारण मनुष्योंका कार्य नहीं है। उसको देनेमें बुद्धिमान पुरुष हो नियुक्त हैं अतःवे पूर्वोक्त विधिक अनुसार आगे कहा जानेवाला दश प्रकारका प्रायश्चित्त दें। __ आगे दशप्रकारके प्रायश्चित्त के नाम बताते हैंआलोचना प्रतिक्रान्तियं त्यागो विसर्जन। . तपः छेदोऽपि मूलं च परिहारोऽभिरोचनं ।। :
अर्थ-आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, त्याग, व्युत्सग,