________________
Aruna...
wwwww
१०८ प्रायश्चित्त-समुच्चय । प्रायश्चित्त है-अर्थात् उस समय रह जो चाई बहो प्रायश्चित्त उसे देना चाहिए ॥ १७७॥ कल्प्याकल्प्यं न जानाति नानिषेवितसेवितं । अल्पानल्पं न बुध्येत तेनेच्छाऽवोधनेऽस्थिरे ॥
अर्थ-यहानगत अस्थिर पुरुष योग्य और अयोग्यको. सेव्य और असेव्यको तथा अल्प दोषाचरणको और बहुत दोषाचरणको नहीं जानता इसलिए उसके लिए इच्छा हो प्रायश्चित्त है ॥ १७८॥ कर्मोदयवशादोषोऽधिगतेषु भवेद्यदि । तेषां स्याहशधाशुद्धिरागमाभ्यनुरागतः॥१७९॥ __ अर्थ-यदि अधिगत परमार्थ पुरुषोंको कर्मके उदयवश कोई दोष लग जाय तो उनको शुद्धि आगममें अनुराग होनेके कारण आलोचनाको आदि लेकर श्रद्धान पर्यंत दश तरहकी है ॥ १७६॥ इति श्रीनन्दिरुगुवरचिते प्रायश्चित्तसमुच्चये
पुरुषाधिकारः षष्ठः ॥६॥