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पुरुमाधिकार।
१०७ प्रधान, और मितुसामान्य साधु । इनमेंसे आचार्य और प्रधान पुरुप गोतार्थ अर्थात् सकल शास्त्रोंक वेत्ता होते हैं तथा कृतकृत्य-सम्पूर्ण शास्त्रोंके व्याख्याता भी होते हैं और अकृतकृत्य भी होते हैं अर्थात् सम्पूर्ण शास्त्रोंके ज्ञाता तो होते हैं परन्तु व्याख्याता नहीं होते । भावार्थ-गीतार्थ. कृतकृत्य और अकृतकृत्य एस तीन तीन प्रकारके आचार्य और टपभ पुरुष होते हैं। गीतार्थश्चतरो भिक्षुः कृतकृत्येतरस्तयोः । आधः स्यादपरो वेधाधिगतश्चेतरोऽपि च ॥ ___ अर्थ-भिन्तु दो तरहका होता है-गोतार्थ ओर अगीतार्थ । उनसे पहला गीतार्थ दा तरहका है कृतकृत्य और अकृतकृत्य अगोतार्थ भी दो तरहका है-अधिगत आर अनधिगत । जो शास्त्रज्ञानसे तोशून्य है परन्तु स्वयं विचारक है उसे अधिगतार्थ कहते हैं और जो केवल गुरुके उपदेश पर ही निर्भर रहता है उसे अगीतार्थ कहते हैं । १७६ ॥ द्विधानधिगताभिख्यः स्यात्स्थिरास्थिरभेदतः।
अत्राप्टास्वनधिगते वांछैवाऽस्थिरनामनि ॥ ___ अर्थ-स्थिर और अस्थिरके भेदसे अनधिगत परमार्थ दो तरहका है। जो धर्ममें निश्चल है वह स्थिर कहा जाता है और जो चारित्रमें चलायमान है वह अस्थिर कहा जाता है। सापेतके इन आठ भेदोंमें अस्थिर नामक अनधिगत परमार्थमें वांजा ही