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पुरुषाधिकार। सर्वं तपो बलोपेते धृत्या हीने धृतिप्रदं । देहदुर्वलमाश्रित्य लघु देयं द्विवर्जिते ॥१४८॥ __ अर्थ-शरीर बलसे परिपूर्ण व्यक्तिको आलोचना आदि दशां प्रायश्चित्त देने चाहिए। धृतिरहितको धैर्य प्रदान करने वाला तप देना चाहिए अर्थात जिस किसी प्रायश्चित्तके देनेसे उसको धेय हो वहां प्रायश्चित्त से देना चाहिए। शरीरबल रहित पुरुषको जिस प्रायश्चित्तके देनसे उसका शरीर बल तदवस्थ रहे वही प्रायश्चित्त उसे देना चाहिए । तथा धृतिरहित और शरीर बल रहित फक्तको पहलेसे भी लघु प्रायश्चित देना चाहिए ॥१४८॥
अन्त्यसंहननोपेतो वलवानागमान्तगः। तस्य देयं तपः सर्व परिहारेऽपि मूलगः ॥१४९॥ ___ अर्थ-जो अर्धनाराच संहनन, कीलिकसंहनन और असंप्राप्त सुपाटिकासंहनन इन तीन अन्त्य संहननोंमें से किसी एक संहननस युक्त है बलवान है और परमागमरूप महा समुद्रका पारगामी हैं उसको उपवासादि परमास पर्यंतकं सभी मायवित्त देने चाहिए। तथा वह अन्त्य संहननवाला परिहार प्रायश्चित्तक प्राप्त होने पर भी मूल प्रायश्चित्तको प्राप्त होता है।
आदिसंहननः सर्वगुणो योऽजितनिद्रकः। देयं सर्व तपस्तस्य पारंचेऽप्यनुपस्थितिः॥१५॥