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पुरुषाधिकार ।
अबहुश्रुतको घटाया सात रहे इनको भियधर्म ओर अभियधर्मका प्रमाण दोसे गुणा किया चौदह हुए अनंकित अभियधर्मको घटाया तेरह रहे। इस तरह पियधर्म, बहुश्र त, अहेतुक, असकृरकारी, ऋजुभाष नामकी तेरहवीं उच्चारणा सिद्ध होती है। यही विधि अन्य उच्चारणाओंके निकालनेमें भो करनी चाहिए। अक्ष रखकर संख्या निकालनेको उद्दिष्ट कहते हैं। पहले निर्विकृति, पुरुमंडल, आचाम्ल, एकस्थान और तमण इन पांचोंकी प्रत्येक शलाका ५, दिसंयोगी १०,त्रिसंयोगी १०, चतुःसंयोगो५, और पंचसंयोगी १ एवं ३१ शलाकाओंका वर्णन कर आये हैं। इकतीस शुद्धियां तो ये और एक आलोचना शुद्धि एवं बत्तीस शुद्धियां उक्त पत्तोस दोषों या पुरुषोंका क्रमसे प्रायश्चित्त है। प्रथम पुरुषको आलोचना, द्वितीयकी निर्विकृति, तृतीयकी पुरुमंडल, चतुर्थकी आचाम्ल, पंचमकी एकस्थान, छठेकी उपवास, सातवेंकी निर्विकृति और पुरुमंडल नामको दो संयोगवाली छठी शलाका शुद्धि। इस तरह प्रति पुरुपको गुरु और लघु दोषका विचार कर एक एक शलाका प्रायश्चित्तं देना चाहिए। द्वात्रिंशत्प्रियधर्माचा अष्टाचार्यादिकाः पुनः। गर्विताद्या दशोद्दिष्टास्तेभ्यो देयं यथोचितं ॥ .
अर्थ-प्रियधर्मादि वचीस पुरुष ऊपर बता चुके हैं। प्राचार्य आदि पाठ पुरुषोंको आगे बतायेंगे तथा गवित मृद्ध :.आदि दश पुरुषोंको भी ऊपर बता पाये हैं। एवं पत्तीस पाठ