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पुरुषाधिकार। कोई भी उच्चारणा पूछी उसमें दोषोंका कौनसा भेद है यह मालूम न हो तो इस गाथा द्वारा मालूम कर लिया जाता है। जैसे किसोने पूछा-पच्चीसवीं उच्चारणामें कौनसा अक्ष है तब पच्चीस संख्या २५ स्थापनकर प्रियधर्म और अभियधर्म २ का भाग दिया बारह लब्ध हुए और एक वाको बचा। "शेषं अक्षपदं जानीहि" इसके अनुसार प्रियधर्म समझना चाहिए क्योंकि पियधम और अप्रियभर्ममें पहला प्रियधर्म है । बारह जो लब्ध आये हैं उसमें "लब्धे रूपं प्रतिप" इसके अनुसार एक मिलाया तेरह हुए इनमें बहुश्रुत और अबहुश्रुतके प्रमाण दोका भाग दिया छह लब्ध आये और एक वाकी वचा पूर्वोक्त निययके अनुसार पहला बहुश्रुत ग्रहण किया । फिर लब्ध छहमें एक मिलाया सात हुए इनमें सहेतुक और अहेतुकका भाग दिया तीन लप पाये और एक वाको बचा पर्वोक्त नियमके अनुसार पहला सहेतुक ग्रहण किया। फिर लन्ध तीनमें एक मिलाया चार हए इनमें सकृत्कारो ओर असत्कारीके प्रमाण दोका भाग दिया दो लब्ध आयेवाको कुछ नहीं बचा "शुद्ध सति प्रक्षोऽन्ते तिष्ठति" इसके अनुसार अंतका असककारी ग्रहण किया । "शुद्ध सति रूपमतेपोऽपि न कर्तव्यः" इसके अनुसार लब्ध दोमें एक भी नहीं मिलाया और ऋजुभाव और अनजुभावका प्रमाण दोका भाग दिया लब्ध एक आया वाको कुछ नहीं बचा पूर्वोक्त नियमके अनुसार अंतका अनुजुभाव ग्रहण किया। इस तरह पच्चीसवीं उच्चारणामें प्रियधर्म, बहुश्रुता