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प्रानश्चित-समुचना
सहेतुक, असकृत्कारी और अनुजुभाव नामका अक्ष पाया। इस तरह अन्य उच्चारणाओंके अक्ष भी निकाल लेने चाहिए। । आगे उद्दिष्ट विधि कहते हैंसंठाविऊण रूवं उर्वरिओ सगुणिन्तु सयमाणे । अवणिज्ज अणंकिदयं कुज्जा पढमंतियं चेव ॥ । अर्थात् एक रूप रखकर अपने ऊपरके प्रमाणसे गुणा करे
और अनंकितको घटावे इस तरह प्रथमपर्यंत करे। भावार्थयहां जो भेद ग्रहण हो उसके आगेकी संख्या अनंकित कही जाती है जैसे प्रियधर्म और अमियधर्ममेंसे यदि प्रियधर्मका ग्रहण हो तो उसके आगेवाले अप्रियधर्यको अनंकित समझना चाहिए । इसी तरह बहुश्रुत और अबहुश्रुत, सहेतुक और अहेतुक, सकृत्कारी और असत्कारी तथा ऋजुभाव और अनजुभावमें भी समझना चाहिए। जैसे किसीने पूछा प्रियधर्म, बहुश्रुत, अहेतुक, असकृत्कारी, ऋजुभाव यह कौनसी उच्चारणा है तव प्रथम एकरूप रक्खा उसको ऊपरके ऋजुभाव और अनूजुभावका प्रमाण दोसे गुणा किया दो हुए अनंकित अनजुभावको घटायां एक रहा इसको सकृल्कारी और असकृल्कारीका प्रमाण दोसे गुणा किया दो हुए, यहां अनंकित कोई नहीं दो ही रहे, इनको सहेतुक और अहेतुकका प्रमाण दोसे गुणा किया चार हुए अनंकित कोई नहीं, चार ही रहे इनको बहुत और अबहुश्र तका प्रमाण दो से गुणा किया आठ हुए अनंकित