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____प्रायश्चित-समुच्चय । जाते हैं इसलिए क्रमसे गुणा करने पर संख्या निकलती है। सो हो वताते हैं-धर्मप्रिय और अधर्मप्रिय ये ऊपरके बहुश्रुत और अबहुश्रुतमें पाये जाते हैं अतः दोनांको परस्परमें गुणनेसे चार भंग होजाते हैं। ये चारों ऊपरके सहेतुक ओर अहेतुकमें पाये जाते हैं इसलिए चारको दोस गुणन पर आठ भंग हो जाते हैं। ये पाठ ऊपरके सकृत्कारों और असकृत्कारीमें पाये जाते हैं इसलिए आठको दोसे गुणने पर सोलह भंग हो जाते हैं। तथा ये सोलह ऊपरके ऋजुभाव और अनुजुभावमें पाये जाते हैं इसलिए सोलहको दोसे गुणने पर दोपांकी बत्तीस संख्या निकल आती है। अब प्रस्तारविधि बताते हैंपढमं दोषपमाणं कमेण णिक्खिविय उवरिमाणं च । पिंडं पडि एक्ककं णिक्खित्ते होई पत्थारो॥ __ अर्थाद पहले दोक्के प्रमाणको क्रमसे एक एक विरलन कर
और अविरलन किये हुए एक एकके ऊपर ऊपरका एक एक पिंड रख कर जोड़ देने पर प्रस्तार होता है। सो ही कहते हैं। • धर्मप्रिय और अधर्मप्रियका प्रमाण दोको विरलन कर क्रमसे लिखे ११। इनके ऊपर दूसरा बहुश्रुत और अबहुश्रुतका पिंड दो दोको रक्खे २१। इनको जोड़नेसे चार होते हैं। फिर इन चारोंको विरलन कर चार जगह रक्खे ११११। इनके ऊपर सहेतुक और अहेतुकका पिंड दो दो रक्खे १३३३ । इनको जोड़नेसे आठ होते हैं । फिर इन आठोंको विरलन कर