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पुरुषाधिकार। गुणैरेतैः समग्रोऽसौ जघन्योत्कृष्टमध्यमां । पौराणिकी गुणोणं निःशेषामभिपूरयेत् ॥
अर्थ-इन पूर्वोक्त गुणों से परिपूर्ण यह अनुपस्थान प्रायश्चित्त वाला जघन्य एध्यम और उत्कृष्ट चिरंतन गुणोंकी सब संततिको पूर्ण करे ॥ १५१॥ श्रद्धाद्या ये गुणाः पूर्वमनुपस्थानवर्णिताः। पारंचिकेऽपि ते किन्तु कृतकृत्योऽधिसंहतिः॥ ___ अर्थ-श्रद्धा, धृति, वैराग्य, परिणामविशुद्धि आदि गुण जो पहले अनुपस्थापना प्रायश्चित्तमें कई गये हैं वे सब पारंचिक प्रायश्चित्तमें भी होते हैं किन्तु इतना विशेप है कि यह पारंचिक प्रायश्चित्तवाला. कृतकृत्य अर्थात् सम्पूर्ण शास्त्रोंका ज्ञाता और व्याख्याता होता है, निद्राविजयी होता है और अनंत वलसंयुक्त होता है ॥ १५२ ॥ सर्वगुणसमग्रस्य देयं पारंचिकं भवेत् । व्युत्सृष्टस्यापि येनास्याशुद्धभावो न जायते॥ __ अर्थ-सव गुणोंसे परिपूर्ण पुरुपको पारंचिक प्रायश्चित्त देना चाहिये। जिससे कि संघसे बाहर कर देने पर भी जिसके अशुद्ध भाव न हो ॥ १५ ॥