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पुरुषाधिकार । •पुरुष और उसको शक्ति धैर्य आदि पर भी विचार करना चाहिए इन सवका अच्छी तरह विचार कर प्रायश्चित्त देना चाहिए ।। १४०॥ __ आगे पुरुषको बताते हैंअश्राद्धोऽथ मृदुर्ग: गीतार्थश्वेतरोऽल्पवित् । दुर्बलो नीचसंघातः सर्वपूर्णस्तथार्यिका ॥१४॥
अर्थ-श्रद्धा नाम अभिलाष-रुचिका है, वह जिसके हो वह श्राद अर्थात् श्रद्धावान् है । जो श्राद्ध नहीं श्रद्धारहित है वह अश्राद्ध है। मृदु नाम नम्रका है। गर्वी मानीको कहते हैं। जिसने जीवादि पदार्थ जाने हैं वह गीतार्थ है। इतर नाग अगीतार्थका है, जिसको जीवादि पदार्थोंका ज्ञान नहीं है जो अल्प शास्त्र जानता है वह अल्पवित है। दुर्बल नाम वलरहित निर्बलका है। जिसके जघन्य संहनन है वह नोचसंघातवाला कहा जाता है। जो सव गुणोंमें समान है वह सर्वपूर्ण है। तथा आर्यिका अर्थात् संयतिका ये दश पुरुप हैं इनका विचार कर प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥ १४१॥ गर्वितो द्विविधो ज्ञेयो दीक्षया तपसा बली। छेदेन छेद्यमानोऽपि पर्यायी गर्वितो भवेत् ॥१४२॥ __अर्थ-अभिमानी दो तरहका जानना। एक दीक्षाभिमानी और दूसरा तपोभिमानी। जो छेद प्रायश्चित्त द्वारा दीक्षा छेद