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आहारलाभाधिकार। __किस क्षेत्रमें कितना प्रायश्चित्त देना चाहिये यह बताते हैंशीतलं यद्भवेद्यत्र रससंसृष्टभोजनं । तत्रोत्कृष्टं तपो देयमुष्णे रूक्षे तु हीनकं ॥१३०॥
अर्थ-जो क्षेत्र ठंडा हो जहां पर कि दूध, दही आदि रसोंके साथ प्रचुरतासे भोजन खाया जाता हो ऐसे मगध आदि देशोंमें उत्कृष्ट तप प्रायश्चित्त देना चाहिये। तथा मारवाड़, विषय, प्रानक, पारिपात्र, मालव आदि उष्ण क्षेत्रोंमें जहां पर कि रूत आहार अधिक मिलता हो वहां बहुत थोड़ा प्रायश्चित्त देना चाहिये ॥ १३६ ॥
इति श्रीनंदिगुरुविरचिते प्रायश्चित्तसमुश्चये
. क्षेत्राधिकारश्चतुर्थः ॥ ४॥
५-आहारलाभाधिकार। यत्रोत्कृष्टो भवेल्लाभः तत्रोत्कृष्टं तपो भवेत् । मध्यमेऽपीषदूनं च रूक्षे क्षमणवर्जितं ॥ १३९॥ __ अर्थ-जिस क्षेत्रमें उत्कृष्ट आहारलाभ हो जहाँके संज्ञी अथवा मिथ्यादृष्टि लोग श्रद्धा आदि गुणांसे युक्त हों, स्निग्ध, मधुर नाना तरहके अच्छे अच्छे आहार देते हों वहाँ उत्कृष्ट प्रायश्चित्त देना चाहिये और जहां मध्यम दर्जेका लाभ होता हो