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७४ . प्रायश्चित समुच्चय । बंदनायास्तनूत्सर्गेऽप्येकादौ विस्मृते त्रिषु । . पुरुमंडलमाचाम्लं क्षमणं च यथाक्रम.॥ ११९ ॥
अर्थ-वंदना ओर कायोत्सर्गके एक वार, दोवार और तोन चार भूल जानेका क्रमसे पुरुमंडल, आचाम्ल और उपवास पायश्चित है। - भावार्थ-एक वार भूलनेका पुरुमंडल; दो वार भूलनेका आचाम्ल और तीन बार भूलनेका उपवास प्रायश्चित्त है॥१६॥ एकादिके गुरोरादौ कायोत्सर्गस्य पारणे। .. पुरुमंडलमाचाम्लं क्षमणं च यथाक्रमं ॥ १२०॥
अर्थ-यदि एक बार या दो बार या तीन वार आचार्यके पहले कायोत्सर्ग समाप्त करे तो उसका क्रयसे पुरुमंडल, आचाम्ल और क्षमण प्रायश्चित्त है ॥ १२० ॥ कारणादा गुरोः पश्चात् कायोत्सर्ग समापयेत् । सकृद्विस्त्रिः पुरुमर्दोऽप्याचाम्लं चैकसंस्थितिः॥ __ अर्थ-यदि किसी कारणवश एक बार, दो बार या तीन चार प्राचार्यके पश्चात कायोत्सर्ग समाप्त करे तो उसका क्रमसे पुरुमंडल प्राचाम्ल और एकस्थान प्रायश्चित्त है ॥ १२१ ।।. आसेधिकां निषद्यां वा न कुर्यात्यादिके निशि। भनाहारोऽम्लभुक्तिश्च पुरुमंडलमेव च ॥१२२॥ अर्थ-रात्रिके समय तीन बार दोबार था एक बार मासे: